SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मनोविज्ञान १२१ जैनागमों में मन के आधार पर भी प्राणियों का अमनस्क (असज्ञी) और समनस्क (संजी) के रूप मे वर्गीकरण किया गया है।' ईहा, अपोह, मार्गणा, गवेपणा, चिन्ता और विमर्श करने की योग्यता जिसमे होती है उसे शास्त्रकार संजी कहते है, और इनके अभाव मे जीव को असंज्ञी कहा जाता है। एक इन्द्रिय से लेकर चार इन्द्रिय वाले सभी जीव अमनस्क होते हैं । पचेन्द्रिय जीवो मे कोई-कोई समनस्क, और कोई-कोई अमनस्क होते है । यहा यह स्मरणीय है कि भावमन अात्मा की ही एक गक्ति होने के कारण सभी प्राणियों को प्राप्त रहता है, मगर द्रव्यमन के अभाव मे उसका उपयोग नहीं हो सकता। भावमन को अगर विद्युत् मान लिया जाय, तो द्रव्यमन को विजली का लटू माना जा सकता है। विद्युत् का संचार होनेपर भी जैसे लटू के अभाव मे प्रकाश नहीं होता, उमी प्रकार भावमन की विद्यमानता मे भी द्रव्यमन के अभाव मे चिन्तन प्रादि मनोव्यापार नही होते । शरीर का राजा, और आत्मा का मत्री होने के कारण मन कभी-कभी आत्मा को मोह मे फमा लेता है, और इधर-उधर भटकाता है, मगर वही मन जब वशीभूत हो जाता है, तो एकाग्रता के लाभ में सहायक बनता है तथा मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का कारण बन जाता है। जैसा कि उत्तराध्ययन में कहा है, 'मन को वशीभूत करने लिए धर्मशिक्षा की आवश्यकता है।' गीता कथित 'अभ्यास और वैराग्य' भी इसी के अन्तर्गत है। 'मन का निग्रह करने से क्या लाभ होता है ?' गौतम स्वामी के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् महावीर ने कहा था----मनोनिग्रह से पाचो इन्द्रिया वशीभूत हो जाती है, विषय वासना का उन्मूलन हो जाता है, और चंचलता नष्ट हो जाती है । मनोविजेता मुमुक्षु को एकान्तसमाधि अथवा एकाग्रता का अपूर्व लाभ होता है। लेश्या भारतीय तत्त्वगवेपकों ने मनोविज्ञान का--मानसिक विचारो, परिणामो, वृत्तियो और चचलतापो का बहुत ऊचे धरातल पर सर्वाङ्गीण विश्लेषण किया १ नन्दि सूत्र, सूत्र ४० । २. उत्तराध्ययन अ० २३, गा० ३६ ।
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy