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________________ सम्यग्ज्ञान को जानने के ढंग जैनागमों में निश्चित किये गये है । शब्दो की मार्मिकता, लामणिकता, प्रांजलता और अभिव्यजनागक्ति का विस्तृत विवेचन व्याकरण और साहित्य विषयक ग्रन्यो में उपलब्ध होता है। गन्द द्वारा प्रतिपाद्य अर्य का ठीक तरह कैसे ज्ञान किया जाय, इसके लिए जैनधर्म में निक्षेप का विधान किया गया है। निक्षेप का सामान्य अर्थ है-निक्षेपण करना, या रखना। भगवान् महावीर कहते है कि शब्द के विवक्षित अर्य को जानने के लिए अनेको प्रकार के निक्षेपो का विधान हो सकता है, किन्तु कम-से-कम चार निक्षेपो से काम चल सकता है, क्योकि, प्रत्येक गन्द कम-ने-कम चार अर्थों मे तो प्रयुक्त होता ही है । वक्ता या लेखक, शब्द को प्रायः चार प्रकार के अर्थो के लिए प्रयुक्त करता है-नाम, स्थापना, द्रव्य अथवा भाव' । इन चार अर्थों मे से गब्द को वक्ता द्वारा विवक्षित अर्यों मे निक्षेपण करना ही निक्षेप कहलाता है । भाषा के प्रत्येक शब्द पर उन्हे घटित किया जा सकता है यहा "राजा" शब्द को ही लीजिए। १. नामनिक्षेपः-माता-पिता ने अपने पुत्र का नाम "राजा" रख दिया । वास्तव में वह राज्य का उपभोग नहीं करता, यहा तक कि राजतत्र का विरोधी है, उसमे राजा के योग्य गुण भी नही है, फिर भी वह राजा कहलाता है। ऐसे व्यक्ति को जब राजा कहा जाता है तो वह नाम निक्षेप से राजा कहलाता है। नामनिक्षेप मे वस्तु के गुण-धर्म का विचार नही किया जाता, केवल लोकव्यवहार की सुविधा के लिए गब्द रूढ कर लिया जाता है। इस कारण "राजा" नाम वाला पुरुष राजा शब्द के पर्यायवाचक नृपति, भूपति, नरेश आदि शब्दो द्वारा अभिहित नहीं किया जाता । नाम-गब्द तीन प्रकार के होते है -- १ यथार्थ नाम, जैसे जल मे उत्पन्न होने के कारण 'जलज' चैतन्यवान होने के कारण 'चेतन' आदि नाम । २ अयथार्थ-जैसे अन्धे का नाम नयन सुख अथवा हीराचन्द, मोतीचन्द आदि। १. अनुयोगद्वार सूत्र, सूत्र ८, तत्वार्थसूत्र अ० १, ५,
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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