SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ईश्वरवाद . २९: वगैरहको भी कारणभूत नहीं मान सकते । इस लिये आपको इस वोदी दलीलका जरा भी सहारा नहीं मिल सकता। कर्तृवादी-भाई ! आपका कथन यथार्थ है परन्तु हम ईश्वर के मात्र ज्ञान, इच्छा और प्रयत्नको ही जगतका कारणभूत नहीं मानते, ईश्वर इन तीनों द्वारा जो कुछ क्रिया करता है उसे ही हम जगतकी रचनामें कारणभूत मानते हैं। अकर्टवादी-महाशयजी! उपयोगशून्यतासे कितनी बड़ी भूल होती है । हम दो दफा इस वातका निराकरण कर चुके हैं, श्रव फिरसे तिसरी दफा हमें वही कहना पड़ता है कि जव ईश्वरको शरीर नहीं है तो उसके मात्र ज्ञान इच्छा और प्रयत्न द्वारा किसी प्रकारकी क्रिया ही नहीं हो सकती, फिर चाहे वह ईश्वरका भी ईश्वर क्यों न हो। इस लिये श्रापका कथन बिलकुल निःसार है। __ कर्तृवादी--अस्तु यह भी जाने दो, हम ऐसा मानते हैं कि ईश्वरके कारण ही जगतकी रचना होती है। अकर्तृवादी-धन्यवाद ! यह तो आपने नवीन ही बात निकाली !! आप जरा सोच विचार कर दलीलें पेश करते जायें तो ठीक रहे। भला हम आपसे यह पूछना चाहते हैं कि ईश्वरके जिस ईश्वरत्वको श्राप जगत रचनाका कारण मानते हैं वह ईश्वरत्व क्या चीज है? क्या आप जानकारपनको ईश्वरत्व कहते हैं ? या कर्तृभावको ईश्वरत्व मानते हैं ? या इससे भी भिन्न स्वरूपवाला ईश्वरत्व समझते हैं ? यदि आप मान जानकारपन को ही ईश्वरत्व मानते हो तो वह जानकारपन भी किस प्रकार का समझना चाहिये? मात्र साधारण जानकारपन समझना चाहिये या सर्वशपन ? कर्तृवादी-प्रथम हम मान निरे जानकारपनको ही ईश्वरत्व समझते हैं और उसे ही जगतकी रचनाका कारण मानते हैं। अकर्तृवादी-आपके उपरोक्त कथन किये हुये ईश्वरत्वके अर्थसे तो ईश्वर सात्र जानकार ही सिद्ध हो सकता है परन्तु कर्ता सावित नहीं हो सकता । यदि जानकारपनके लिये ही जगतकी रचना हो जाती हो तो फिर हम यह पूछते हैं कि जगतमें ऐसा
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy