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________________ ईश्वरवाद कर्तृवादी-खैर कुछ देरके लिये यह मान लिया जाय कि पृथवी आदिको देखकर आपको उस प्रकारकी बुद्धि न पैदा होती हो परन्तु जो प्रामाणिक जन हैं उन्हें तो उस तरहकी धुद्धि पैदा होना यह सहज सी बात है और उस प्रकारकी बुद्धि द्वारा ही कर्ताको सावित करना यह सर्वथा सरल और सुगम है। अकर्तृवादी-वेशक अापके कथनानुसार कदाचित् प्रामाणिक मनुष्योंको पृथवी वगैरह देखकर ये किये हुये हैं इस प्रकारकी बुद्धि पैदा होती हो परन्तु उनको ही ऐसी बुद्धि पैदा होनेका कारण या निमित्त क्या है ? यह बात स्पष्टतया मालूम होनी चाहिये। हमारी समझ मुजव नजरसे देखनेसे ऐसी बुद्धि पैदा होती हो यह असंभवित बात है । यदि ऐसा ही होता हो तो सव मनुष्योंको भांखें समान ही हैं इस लिये हमे भी उस प्रकारकी बुद्धि देखनेसे अवश्य पैदा होनी चाहिये। कर्तृवादी-महाशयजी ! देखने मात्रसे नहीं परन्तु प्रामाणिक मनुप्य वस्तुको देखकर उस प्रकारकी बुद्धि अनुमान या अपनी अटकलसे पैदा करते हैं और उस प्रकारका विचार या अनुमान कदाचित् आपको न होसके यह स्वाभाविक बात है, अर्थात् इस प्रकारका विचार अंकृरित करनेका मूलकारण अनुमान और अटकल ही है। अकर्तृवादी-महानुभाव ! जरा बुद्धिका व्यय करके कुछ विचार करो कि कर्त्ताको सिद्ध करनेके लिये सबसे प्रथम पेशकी हुई श्रापकी अटकल अभीतक अधर ही लटकती है, उसपर आप यहाँ पर यह.दूसरी अटकल (अनुमान ) खड़ी कर रहे हैं। यदि शाप एक अटकल-कल्पनाको दूसरी अटकल पर लादकर काम निकालना चाहते हो तो इस प्रकार कदापि पार न पायगा । अटकल पर अटकलें लादते रहनेसे उसका अन्त ही नहीं सकता और ना ही इससे कार्यकी सिद्धि हो सकेगी । इस तरह पृथवी वगैरह देखकर ये किसीके किये हुये हैं प्रथम इस प्रकारकी वृद्धि पैदा होनेमें ही शंका उपस्थित होती है तो फिर उसके द्वारा कर्ताकी अटकल किस प्रकार सत्य मानी जा सकती है? .
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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