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________________ ईश्वरवाद गुगयुगान्तर बीत जाने पर भी उनके वनानेवालोका पता न लग सकेगा। अस्तु हम आपसे सिर्फ चर्चाके लिये ही यह पूछते हैं कि आप जगतको बनावट रूप मानते हैं तो वह वनावट बिलकुन साधारण है या किसी खास तौरकी असाधारण है? कर्तृवादी-जगत की बनावटको हम विलकुल साधारण मान ते हैं, आप इसके विषयमें क्या कहना चाहते हैं.सो कहिये । अकर्तवादी-महाशयजी! आपको जरा इस बात पर विचार करना चाहिये कि जव आप जगतको विलकुल साधारण बनावट मान कर उसके द्वारा किसी असाधारण बुद्धिमान् उसके रचयिता की सिद्धि करना चाहते हैं तो भला यह किस तरह बन सकता है ? क्यों कि साधारण वस्तुको घनानेवाला असाधारण पुरुप ही हो ऐसा कोई नियम नहीं है । साधारण वस्तुको बनानेवाला बुद्धिमान् भी हो सकता है और मन्दबुद्धि भी हो सकता है, पागल या अनभिज्ञ भी हो सकता है। परन्तु वह कोई भी एक हो सकता है। अर्थात् साधारण वनावटके द्वारा मात्र किसी एक बनानेवाले की ही कल्पना की जा सकती है। परन्तु असाधारण या धुद्धिमान् वनानेवालेकी कल्पना तो कदापि नहीं हो सकती। ऐसी परिस्थितिमें आपका साध्य सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान ईश्वर किस तरह सिद्ध हो सकता है? फतवादी-यदि ऐसा है तो हम जगतको एक असाधारण बनावट मानेगे और उसके द्वारा उसके रचयिताको भी असाधारण पुरुप मानेंगे, अव कहिये आप क्या कहना चाहते हैं ? अकर्तवादी-भलेही आपः जगतको असाधारण वनावट कहें परन्तु हमारी दृष्टिसे तो साधारण या असाधारण वनावटमें कुछ विशेप फेरफार नहीं देख पड़ता। क्यों कि उसके वनानेवाला प्रत्यक्ष न देख पड़नेके कारण उन दोनों वनावटोंके बीच क्या फेरफार है, अर्थात् साधारण और असाधारण बनावटमें क्या विशेषता है यह जानना बड़ा दुस्कर है। इस लिये यह कहनेकी आवश्यकता नहीं कि जो दूपण साधारण वनावटमें चरितार्थ होता है वही असाधारण वनावटमें भी लागू पड़ता है।
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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