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________________ इस प्रमाणमें भली प्रकार दिखला दी गई है । स्याद्वादको टीकाकारने 'परहेतुतमोभास्कर' नामसे पुकारा है। ग्रन्थका यही अन्तिम विषय है । इस ग्रन्थकी विपयविवेचनशैली कैसी उमदा है यह बात समग्र ग्रन्थ पढ़नेसे पाठकोंको स्वयं मालूम होगी। . अन्तमें शिरोभागमें दिये हुए श्लोकके द्वारा सम्यक्त्व प्राप्ति करा देने में कारण हुए सद्गुरुको वन्दन करके और जिन शासन. में विद्वानोंका अनुराग हो यह सदिच्छा प्रगट करके मैं यह उपोद्धात पूर्ण करता हूँ। शुक्रवार ता. १० जून १९२७ । जेष्ट शु. १० वीर सम्बत् २४५३ । लक्ष्मण रघनाथ भिडे. शनवार २९७ पूना सिटी.
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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