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________________ जैन दर्शन -10 श्वेताम्बर तथा दिगम्बर मुनियोंका चेप और आचार "जन दर्शनको माननेवाले दो सम्प्रदाय हैं.। जिसमें एक श्वेताम्बर और दूसरा दिगम्बर है। श्वेताम्बर मुनित्रोंका वेप और प्राचार इस प्रकार है। श्वेताम्बर मुनि अपने पास सदैव रजोहरण और मुखपट्टी रखते हैं। केशापनयनके लिये हजामत न कराकर वे अपने आप या दूसरे मुनिके हाथसे सूछ दाढ़ी तथा मस्तकके केश उखेड़ डालते हैं, यह उनका मुख्य लक्षण है। वे कटिमें-(कमरमें) चोनपट्टक नामक वस्त्र पहनते हैं और शरीर आच्छादन करने के लिये एक चद्दर रखते हैं। मस्तक पर किसी प्रकारका वस्त्र नहीं रखते । इस प्रकारका उनका वेष होता है। ___ मार्ग चलते या उठते बैठते किसी भी जीवको किसी प्रकारका दुःख न हो इस वातका वे सदैव ध्यान रखते हैं। वे मार्ग चलते समय एक जुये प्रमाण (चार हाथ प्रमाण) मार्गमें आगे दृष्टि रखकर चलते हैं। वोलते समय, आहार पानी ग्रहण करने में, उपयोगी वस्तुओंके लेने और रखने में तथा शौच वगैरह जानेमें किसी स्थूल या सूक्ष्म जीवको किसी प्रकारकी जरा भी तकलीफ न पहुंचे इस वातके लिये वे बड़े ही सावधान रहते हैं। वे मानसिक, वाचिक तथा शारीरिक वृत्तियों, प्रवृत्तियों पर सदैव संयम रखते हैं। शरीरसे हिंसा करते नहीं कराते नहीं और न ही करनेवालेको अनुमति देते ।। वे सब जगह हमेशह ही सत्य वचन बोलते हैं। आवश्यकता पड़ने पर भी वे कभी किसीकी कुछ वस्तु मालिकके दिये विना ग्रहण नहीं करते। जीवन पर्यंत मन वचन और शरीरसे नित्य ब्रह्मचर्यका पालन करते हैं। किसी प्रकारकी धर्म सामग्रीमें भी
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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