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________________ जीववाद भी जो उष्णता रही हुई है और उसमेंसे जो बाफ निकलती है इसका कारण उसमें उत्पन्न हुये जीवोंके मृत शरीर हैं । अर्थात् कूड़े के ढेरकी वाफ और उसका उष्ण स्पर्श ये दोनों ही प्रकारण नहीं हैं किन्तु सकारण ही हैं । यदि यहाँपर यह प्रश्न किया जाय कि जीवोंके मृत शरीर बाफके या उष्ण स्पर्शके कारण किस तरह हो सकते हैं ? इसका उत्तर यह है - जैसे कि जले हुए पाषाण पर पानी छोड़कनेसे उसमेंसे वाफ निकलती है वैसे ही यहाँपर भी जो बाफ निकलता है उसका कारण ठंडी है । इस तरह अन्य जगह भी वाफ और उप्ण स्पर्शका कारण कहींपर सचित् पदार्थ है और कहींपर अचित पदार्थ है यह समझना चाहिये। इसी प्रकार जाड़ेकी मौसममें पर्वतके समीप और वृक्षोंके नीचे जो उष्णताका अनुभव होता है उसे भी मनुष्यके शरीरमें रहे हुये उपण स्पर्शके समान जीवहेतुक समझना चाहिये । ऐसे ही ग्रिष्मकाल में बाहरके सक्त तापके कारण जैसे मनुष्यके शरीरमें रहा हुआ तैजस शरीररूप अग्नि मंद पड़ जाता है और उससे मनुष्यका शरीर ठण्डा मालूम देता है वैसे ही पानीमें रहे ये ठंडे स्पर्श विपयमें भी समझ लेना चाहिये । अर्थात् जैसे मनुष्य शरीरका ठंडा स्पर्श जीवहेतुक है वैसे ही पानीमें जान पड़ता ठंडा स्पर्श भी जीवहेतुक ही है । इस प्रकार अनेक युक्तियोंसे पृथ्वीके समान पानीको भी सजीव समझ लेना चाहिये । ८७ अव अग्निको भी सजीव समझना चाहिये । उसकी युक्ति इस प्रकार है - जिस तरह रात्रीके समय खद्योत ( पठवीजना) अपने शरीरके परिणामसे प्रकाश देता है और वह प्रकाश जीव शक्तिका प्रत्यक्ष फल है वैसे ही अंगार वगैरहके प्रकाशको भी जीव शक्तिका फलरूप मानना यह किसी प्रकार कुछ प्रयुक्त नहीं है । अथवा जैसे बुखारकी गर्मी जीववाले शरीरके विना अन्य कहीं नहीं हो सकती, वैसे ही अग्निकी गरमीभी उसमें जीवकी विद्यमानता सिवाय नहीं होसकती ! कहींपर किसी भी समय मृतशरीरमें बुखारकी विद्यमानता नहीं हो सकती । इस प्रकार उष्णताके साथ जीवकी विद्यमानताका सहचार मालूम होनेसे अग्निको सचित
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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