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________________ ८६ जैन दर्शन कारण वर्फ, वगैरह कहीं कहीं पर अन्य पानीके समान सचैतन्य है। ४जिस प्रकार स्वभावसे ही पैदा होता हुआ मेंडक सचेतन है उसी प्रकार जमीन खोदते हुये स्वाभाविक निकलनेवाला पानी भी सचे तन है। ५जिस प्रकार कितनीएक दफा वादलोंके विकारमें अपने आप ही उत्पन्न होकर नीचे पढ़ती हुई मछली सचेतन है वैसे ही आकाशमें रहा हुआ पानी भी सचेतन है । इस प्रकार अनेक युक्तियों द्वारा पानीको सचेतन समझना चाहिये। ६ जाड़ेकी ऋतु जब वहुत ठंडी पड़ने लगती है उस वक्त छोटे जलाशयमें कम, बड़े जलाशयमें कुछ अधिक, और उससे भी बड़े जलाशयमें विशेषतासे वाफें निकलती हुई देखनेमें आती हैं, वे जीवहेतुक ही होनी चाहिये । जिस प्रकार कम मनुष्योंकी भीड़ में कम बाफ, अधिक मनुष्योंकी भीड़में अधिक वाफ और उससे भी अधिक मनुष्योंकी भीड़में उससे भी अधिक वाफ होती है.उसी प्रकार जाड़ेको मौसममें पानीसे निकलता हुआ उष्ण स्पर्श भी उपण स्पर्शवाली वस्तुसे पैदा होता है । यदि कोई यो. कहे कि पानी में वह स्पर्श स्वाभाविक है अतः पूर्वोक्त कथन मानने योग्य नहीं। क्योंकि वैशेषिक वगैरह वादियोंने कहा है कि पानी में ठंडा स्पर्श ही होता है। तात्पर्य यह है कि तालाव कुवाँ वगैरह जलाशयोमेसे जाड़ेमें जो वाफ निकलती है वह जीवहेतुक है। जिस तरह जाड़ेमें ठंडे पानीसे न्हाते हुये मनुष्यके शरीर से. बाफ निकलती है उसका कारण उसका तैजस शरीरवाला प्रात्मा. है, वैसे ही जाड़े में पानी से निकलती हुई बाफका कारण भी पानीका तैजस शरीरवाला आत्मा है। इसके सिवाय पानी से वाफ निकलनेका अन्य कोई कारण नहीं। अतः पानी भी सजीव. है । यह विषय युक्तिपूर्वक सरलतासे स्पष्ट समझा जा सकता है। कदाचित् यों कहा जाय कि कितनी एक दफा कूड़ेके ढेरेमेसे भी बाफ निकलती मालूम देती है और उस वाफका कोई हेतु नहीं माना जासकता, इससे पानीमेसे निकलती हुई बाफ भी कूड़ेके ढेर से निकलती हुई बाफके समान ही क्यों न अहेतुक मानी जाय ? इस बातका समाधान इस प्रकार है:-कूड़े के ढेरमें
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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