SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - । ( २७ ) पुद्गलस्य सक्षेपतो द्वौ भेदी, अरणस्कन्ध भेदात् । प्रदेशमानभाविस्पर्शादिपर्यायप्रसवसामर्थ्येन अण्यन्ते शब्द्यन्ते इति प्रणवः। अरणवो हि सूक्ष्मत्वादात्मादयः, आत्ममध्या:, आत्मान्ताश्च । स्थूलभावेन ग्रहणनिक्षेपादिव्यापारस्कन्धनात् स्कन्धा इति संज्ञायते । यद्यपि द्वयणकादय केचित् स्कन्धाः ग्रहणनिक्षेपरणादिव्यापारायोग्यास्तथापि रूढौ क्रिया क्वचित् सती उपलक्षगत्वेनाश्रीयत इति तेष्वपि स्कन्गख्या प्रवर्तते । कथमनयोरुत्पत्तिरितिचेत्-अरणवो हि भेदादेवोत्पद्यन्ते । स्कन्धास्तु केचिद भेदात्, केचित् संघातात्, केचिच्च द्वाभ्यामेताभ्या, अन्यतो भेदेन अन्यस्य च सघातेन इति । यस्तु स्कन्धोऽचाक्षुष च भेदसघाताभ्या चाक्षुषो भवति । सत्यपि तद्भदे अन्यसंघातात् सौम्यपरिरणामपरित्यागे स्थौल्योत्पत्तौ चाक्षुषो भवति । Vपुद्गल के संक्षेप में दो भेद हैं-अरण और स्कन्ध । जो प्रदेश मात्र है और भविष्य में स्पर्शादि पर्याय को उत्पन्न करने की शक्ति द्वारा जो शब्दायमान हैं वे अणु है। सूक्ष्म होने से निश्चय पूर्वक वे अरग स्वयं ही आदि रूप होते है, खुद ही मध्य रूप और स्वय ही अन्त रूप होते हैं । स्थूल होने से-उठाना, रचना वगैरह व्यापार जिनमें संभव हो वे स्कच्च-कहे जाते हैं । यद्यपि द्वयणुक वगैरह कई स्कन्ध ऐसे हैं जिनमें उठाना रखना रूप व्यापार नही होता तो भी कही क्रिया के रूढ हो जाने पर उपलक्षण रूप से उसका आश्रय लेलिया जाता है इसलिए द्वयणुक वगैरह भी स्कन्ध कहे जाते है । अणु और स्कन्ध की उत्पत्ति किस तरह होती है-पूछा जाने पर-अणु तो भेद से ही उत्पन्न होते है । और स्कन्ध कई भेद से, कई संघात से और कई भेद-सघात दोनो से अर्थात् कुछ के निकलने से और कुछ के मिलने से वे बनते हैं। जो स्कन्ध इन्द्रियो से दिखाई नही पड़ता वह भेदसघात से आंखों से दिखाई पड़ने लगता है। सूक्ष्म स्कन्ध मे से कुछ निकलने पर और अन्य के मिलने पर उसका सूक्ष्म परिणमन छूटकर स्थूलता उत्पन्न हो जाती है और तब वह दिखाई पड़ने लगता है। - ~ - umar
SR No.010218
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth, C S Mallinathananan, M C Shastri
PublisherB L Nyayatirth
Publication Year1974
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy