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________________ ( २८ ) ननु पुद्गलाना बन्धोत्पत्ती को हेतुरिति चेत् एतत् स्निग्ध रूक्षगुणादेवैतेषां बन्धो भवति । स्निग्धत्वं हि चिक्कबरंग गुणलक्षणस्तस्य पर्याय तद्विपरीतपरिणामो हि रूक्षत्वं एष बन्धो द्वयधिकगुणयोः पुद्गलयोर्भवति, न चैतन्न्यूनाधिकयोः । बन्धे च सति द्वधिकगुणः स्कन्धः स्वपारिणामिको भवति, यथा क्लिनो गुडोऽधिकमधुररसः परीतानां रेण्वादीनां स्वगुणोत्पादनात् पारिणामिक इति । धर्माधर्मद्रव्यसिद्धिः–धर्मद्रव्यलक्षणं - जीवपुद्गलाना गतिरूपपरिणतानामुदासीनतया गतिहेतुत्वं यथा जलं मत्स्यगमने । " शंका है: - पुद्गलों के वध होने का क्या कारण है ? उत्तर है - स्निग्ध रूक्ष गुण होने से ही इनका वन्ध होता है । स्निग्धता चिकनाई को कहते हैं और रूक्षता रूखेपन को । यह बन्ध दो गुण अधिक परमारों का ही होता है, कम और ज्यादा गुणवालों का नही अर्थात् एक परमाणु मे स्निग्धता या रूक्षता के दो गुण हो और दूसरे परमाणु में स्निग्धता या रूक्षता के चार गुण हो तभी बन्ध होगा - इस तरह तीन गुण वाले का पाच गुण वाले से, चार गुण वाले का छह गुण वाले से बन्ध होगा । और वन्ध हो जाने पर दो गुरण अधिक वाला परमाणु कम गुरणवाले परमाणु को अपने रूप परिणमन कर लेता है। जैसे बहुत मीठा वहने वाला गुड पडे हुए मिट्टी के करणो में अपना गुण उत्पन्न करके अपना जैसा बना लेता है धर्म-प्रधर्म द्रव्य को सिद्धि चलते हुए जीव और पुद्गलों को उदासीन रूप से गति मे सहायक होना धर्म द्रव्य का लक्षण है अर्थात् यह किसी भी द्रव्य को प्रेरणा करके नही चलाता किन्तु जो जीव और पुद्गल
SR No.010218
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth, C S Mallinathananan, M C Shastri
PublisherB L Nyayatirth
Publication Year1974
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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