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________________ १६] जैन दर्शन में प्रमाण मौमांसा तार्किक मत के अनुसार अनुयोग द्वार में वर्तमान आवश्यक पर्याय में द्रव्य पद का उपचार किया गया है ३७। इसलिए वहाँ कोई विरोध नहीं आता। सैद्धान्तिक गौण द्रव्य को द्रव्य मानकर इसे द्रव्यार्थिक मानते हैं और तार्किक वर्तमान पर्याय का द्रव्य रूप में उपचार और वास्तविक दृष्टि में वर्तमान पर्याय मान उसे पर्यायार्थिक मानते हैं। मुख्य द्रव्य कोई नही मानता। एक दृष्टि का विषय है-गौण द्रव्य और एक का विषय है पर्याय। दोनों में अपेक्षाभेद है, तात्त्विक विरोध नहीं। द्रव्याथिक नय द्रव्य को ही मानता है, पर्याय को नहीं मानता, तब ऐसा लगता है-यह दुर्नय होना चाहिए। नय में दूसरे का प्रतिक्षेप नहीं होना चाहिए। वह मध्यस्थ होता है। बात सही है, किन्तु ऐसा है नहीं। द्रव्यार्थिक नय पर्याय को अस्वीकार नहीं करता, पर्याय की प्रधानता को अस्वीकार करता है। द्रव्य के प्रधान्यकाल मे पर्याय की प्राधानता होती नही, इसलिए यह उचित है ३१ यही बात पर्यायार्थिक के लिए है। वह पर्याय-प्रधान है, इसलिए वह द्रव्य का प्राधान्य अस्वीकार करता है। यह अस्वीकार मुख्य दृष्टि का है, इसलिए यहाँ असत्-एकान्त नहीं होता। पर्यायाथिकनय "जुसूत्र का विषय है. वर्तमान कालीन अर्थपर्याय । शब्दनय काल आदि के भेद से अर्थभेद मानता है। इस दृष्टि के अनुसार अतीत और वर्तमान की पर्याय एक नहीं होती। सममिलन निरुक्ति भेद से अर्थ-भेद मानता है। इसकी दृष्टि मे घट और कुम्भ दो हैं। ___एवम्भूत वर्तमान क्रिया में परिणत अर्थ को ही तदृशब्द वाच्य मानता है। ऋजु सूत्र वर्तमान पर्याय को मानता है। तीनो शब्दनय शब्दप्रयोग के अनुसार अर्थभेद ( भिन्न-अर्थ-पर्याय) स्वीकार करते है, इसलिए ये चारों पर्यायार्थिक नय हैं। इनमें द्रव्याश गौण रहता है और पर्यायांश मुख्य । अर्थनय और शब्दनय नैगम, संग्रह, व्यवहार और अजुसूत्र-ये चार अर्थनय हैं। शब्द, सममिरुद और एवम्भूत-ये तीन शब्द नय हैं। यं तो सातो नय ज्ञानात्मक -
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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