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________________ जैन दर्शन में प्रमाण मीमासा [१५९ नानात्व और एकत्व दोनो सत्य है। एकत्व निरपेक्ष-नानात्व और नानात्वनिरपेक्ष एकत्व-ये दोनो मिथ्या है। एकत्व प्रापेक्षिक सत्य है। 'गोत्व' की अपेक्षा से सव गायो मे एकल है। पशुत्व की अपेक्षा से गायो और अन्य पशुओ में एकत्व है। जीवत्व की अपेक्षा से पशु और अन्य जीवो में एकत्व है। द्रव्यत्व की अपेक्षा से जीव और अनीव में एकत्व है । अस्तित्व की अपेक्षा से समूचा विश्व एक है । आपेक्षिक सत्य से हम वास्तविक सत्य की ओर जाते हैं, तब हमारा दृष्टिकोण मेद-वादी बन जाता है। नानात्व वास्तविक सत्य है। जहाँ अतित्व की अपेक्षा है, वहाँ विश्व एक है किन्तु चैतन्य और अचैतन्य, जो अत्यन्त विरोधी धर्म हैं, की अपेक्षा विश्व एक नहीं है। उसके दो रूप हैं(१) चेतन जगत् (२) अचेतन जगत् । चैतन्य की अपेक्षा चेतन जगत् एक है किन्तु स्वस्थ चैतन्य की अपेक्षा चेतन एक नहीं है । वे अनन्त हैं । चेतन का वास्तविक रूप है--स्वात्म-प्रतिष्ठान । प्रत्येक पदार्थ का शुद्ध रूप, यही स्वप्रतिष्ठान है । वास्तविक रूप मी निरपेक्ष सत्य नहीं है । स्व में या व्यक्ति मे चैतन्य की पूर्णता है। वह एक व्यक्ति-चेतन अपने समान अन्य चेतन व्यक्तियों से सर्वथा भिन्न नहीं होता, इसलिए उनमे सजातीयता या सापेक्षता है। यही तथ्य आगे बढ़ता है। चेतन और अचेतन में मी सर्वथा भेद ही नही, अभेद भी है। भेद है वह चैतन्य और अचैतन्य की अपेक्षा से है। द्रव्यत्व, वस्तुत्व, अस्तित्व, परस्परानुगमत्व आदि-आदि असंख्य अपेक्षाओ से उनम अमेव है। दूसरी दृष्टि से उनमें सर्वथा अमेट ही नही भेद भी है। अभेद अस्तित्व श्रादि की अपेक्षा से है, चैतन्य की अपेक्षा से भेद भी है। उनमे स्वरूप-भेद है, इसलिए दोनो की अर्थक्रिया भिन्न होती है। उनमे अभेट भी है, इसलिए दोनो मे शेयचायक, ग्राह्य ग्राहक आदि-आदि सम्बन्ध है ।। सग्रह और व्यवहार अभेद और भेद मे तादात्म्य सम्बन्ध है-एकात्मकता है। सम्बन्ध दो से होता है। केवल भेद या केवल अभेद में कोई सम्बन्ध नही हो सकता। अभेद काशुद्धरूप है-सत्तारुप सामान्य या निर्विकल्पक महामत्ता। अशुद्धरूप है-अवान्तर सामान्य (मामान्यविशेपामयात्मक मामान्य) भंद का
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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