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________________ १४२] जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा हेतुगम्य तर्क का विषय है और अहेतुगम्य श्रद्धा का तर्क का क्षेत्र सीमित 1 यह बात सत्यान्वेषक है । इन्द्रिय प्रत्यक्ष जो है, वही चरम या पूर्ण सत्य है, नहीं मानता । एक व्यक्ति को अपने जीवन में जो स्वयं ज्ञात होता है, वह उतना ही नहीं जानता, उससे अतिरिक्त भी जानता है । अतीन्द्रिय अर्थ तर्क Taranatद तर्क के द्वारा अतीन्द्रिय पदार्थ जाने जा सकते तो आज तक उनका निश्चय हो गया होता १७ | तर्क के लिए जो अगम्य था, वह आज विज्ञान के प्रयोगों द्वारा गम्य बन गया । फिर भी सब कुछ गम्य हो गया, यह नही कहा जा सकता। एक समस्या का समाधान होत है तो उसके साथ-साथ अनेक नई समस्याएं जन्म ले लेती है। आज से सौ वर्ष Copy पूर्व वैज्ञानिकों के सामने शक्ति के स्रोतो को पाने की समस्या थी । उसका समाधान हो गया। नई समस्या यह है कि उनका मितव्यय कैसे किया जाए २/ यही बात अगम्य की है । अगम्य जितने अंशो में गम्य बनता है, उससे कहीं अधिक अगम्य आगे आ खड़ा होता है । इन्द्रिय और मन से परे भी ज्ञान है, यह शुद्ध तर्क के आधार पर नही समझा जा सकता किन्तु जब आँखें मूंदकर या आँखो पर सने आटे की मोटी पट्टी या लोह की घनी चद्दर लगा पुस्तकें पढ़ी जाती हैं, तब तर्कवाद ठिठुर जाता है। इसीलिए अध्यात्मयोगी आचार्य हरिभद्र कहते हैं- “ शुष्क तर्क का आग्रह मिथ्या अभिमान लाता है, इसलिए मुमुक्षु वैसा आग्रह न रखे १८) " शुष्क तर्क वह है जो अपनी सीमा से बाहर चले, अतीन्द्रिय ज्ञान का सहारा लिए बिना अतीन्द्रिय पदार्थ का निराकरण करे। . तुर्क के बिना कोरी श्रद्धा अन्ध विश्वास उत्पन्न करती है। श्रद्धा की भी सीमा है । वीतराग की वाणी ही श्रद्धा का क्षेत्र है । वीतरागता स्वय एक समस्या है। राग द्वेष - हीन मनोवृत्ति में आग्रह- हीनता होगी । आग्रह - हीन व्यक्ति मिथ्याभिमान या मिथ्या प्रकाशन नहीं करता, इसलिए श्रद्धा का केन्द्र बिन्दु वीतरागता ही है। आग्रह - हीनता होने पर भी अज्ञान हो सकता है । अज्ञान से सत्य का प्रकाश नही मिल सकता । सत्य का प्रकाश तर मिले, जब ग्रह न हो और ज्ञान हो । श्रद्धा का तर्क पर और तर्क का श्रद्धा पर निय मन रहता है, तत्र दोनो मिथ्यावाद से बच जाते है ।
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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