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________________ ३०६ ३. यावृत्य- आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष्य, ग्लान, मण, कुल, संघ साधु अथवा विद्वान पर यदि किसी प्रकार की व्याधि या परीषह भाये तो या वश्यक उपकरणों से उसका प्रतीकार करना वैयावृत्य है। ४. स्वाध्यायतप-शास्त्रों का अध्ययन करना। इसके पांच भेद हैंवाचना (पढ़ना, पढ़ाना या प्रतिपादन करना), पृच्छना (सन्देह हो जाने पर पूछना), अनुप्रेक्षा (बारम्बार चिन्तन करना), आम्नाय (पाठ की आवृत्ति) और धर्मोपदेश । स्वाध्याय से संशय का उच्छेद, प्रज्ञा में तीक्ष्णता, प्रवचन में स्थिति, तप में वृद्धि, विचार में शुद्धि और परवादियों की शंकाओं का समाधान होता है। ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय भी इसी से होता है। ५. व्युत्सर्ग-व्युत्सर्ग का अर्थ है त्याग । वह दो प्रकारका है बाह्य और आभ्यन्तर । बाह्य पदार्थों का त्याग बाह्य व्युत्सर्ग है और क्रोध, मान, माया, लोभ, मिथ्यात्व आदि आभ्यन्तर दोषों की निवृत्ति आभ्यन्तर व्युत्सर्ग है। ६. ध्यान-गमन, भोजन, शयन और अध्ययन आदि विभिन्न क्रियाबों में भटकने वाली चित्तवृत्ति को एक क्रिया में रोक देना 'निरोध' है और यही निरोध ध्यान कहलाता है । ध्यान के चार भेद हैं- आर्त, रौद्र, धर्म्य और शुक्ल ध्यान । ध्यान और योगसाधना : ध्यान का तात्पर्य है-चित्तवृत्ति को केन्द्रित करना । इसका शुभ और अशुभ दोनों कार्यों में उपयोग होता है । आर्त और रौद्र ध्यान अशुभ और अप्रशस्त कार्यों की प्राप्ति के लिए किये जाते हैं और धर्मध्यान तथा शुक्लध्यान शुभ और प्रशस्त फल की प्राप्ति में कारण होते हैं। मन को बहिरात्मा से मोड़कर अन्तरात्मा और परमात्मा की ओर ले जाना धर्मध्यान और शुक्लध्यान का कार्य हैं। सोमदेव ने अप्रशस्त ध्यानोंको लौकिक और प्रशस्त श्यानोंको लोकोत्तर कहा है।' १-२. मार्त और रौद्ध ध्यान ___ अप्रिय वस्तु को दूर करने का ध्यान, प्रिय वस्तु के वियुक्त होने पर उसर्क पुनःप्राप्ति का ध्यान, वेदना के कारण क्रन्दन आदि तथा विषयसुखों की आकांक्ष आर्तध्यान के मूलकारण हैं। हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह मादि संरक्षण के कारण रौद्रध्यान होता है। ये दोनों ध्यान अप्रशस्त हैं और संसा १. उपासकाध्ययन, ७०८.
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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