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________________ बसे प्रश्न प्रारम्भ से ही उठते आये हैं। प्रायः सभी दर्शनों ने इन प्रश्नों पर विचार किया है। भ. महावीर ने इसका समाधान किया कि लोक द्रव्य की अपेका सान्त है किन्तु भाव की अपेक्षा अनन्त है। द्रव्य संख्या में एक है इसलिए सान्त है और यह पर्यायों की अपेक्षा से अनन्त है । काल की दृष्टि से शाश्वत है पर क्षेत्र की दृष्टि से सान्त है । लोक पंचास्तिकायिक है । वह बनेकान्त की दृष्टि से शास्वत भी है और अशाश्वत भी है।' लोक-सृष्टि ब्रह्मा आदि किसी विवर की कति नहीं। वह तो द्रव्यों का एक स्वाभाविक परिणमन है। वैदिक दर्शन में ईश्वर को सृष्टि का कर्ता माना जाता है। इस सनर्भ उसके प्रमुख तर्क इस प्रकार हैi) पृथ्वी आदि का कर्ता कोई बुद्धिमान् है क्योंकि वह घट के समान कार्य है। जो कार्य होता है उसका कोई कर्ता अवश्य होता है। ) कार्यत्व हेतु की व्याप्ति केवल बुद्धिमत्कर्तृत्व के साथ ही मानना चाहिए, अशरीरी सर्वज्ञ, कर्ता के साथ नहीं । ज्ञान, चिकीर्षा नीर प्रयत्न के साथ ही कार्य होते हैं । ईश्वर सभी कार्यों का कर्ता है अतः उसे सर्वज्ञ भी होना चाहिए । iii) वह ईश्वर एक है और अनेक कर्ता उस एक अधिष्ठाता के नियन्त्रण में ही कार्य करते हैं। iv) बनस्पति आदि का कर्ता दृश्य नहीं, अतः उसे दृष्यानुपलब्धि हेतु से असिद्ध नहीं किया जा सकता। v) ईश्वर धर्म-अधर्म की सहायता से ही परम दयालु होकर तदनुसार सुख-दुःख रूप शरीरादि की रचना करता है। vi) धर्म-अधर्म तो अचेतन हैं । अतः ईश्वर रूप चेतन से अधिष्ठित होकर वह कार्य करते हैं । आत्मा यह काम कर नहीं सकता क्योंकि उसमें अदृष्ट तथा परमाणु का ज्ञान नहीं । आचार्य कुन्दकुन्द के बाद समन्तभद्र, सिद्धसेन, अकलंक, विद्यानंद आदि जैन दार्शनिकों ने सृष्टि के सन्दर्भ में वैदिक दार्शनिकों के उपर्युक्त तर्कों का इस प्रकार खण्डन किया i) कार्यत्व हेतु युक्तियुक्त नहीं क्योंकि उसके मानने पर ईश्वर भी कार्य हो जायेगा। फिर ईश्वर का भी कोई निर्माता होना चाहिए। इस तरह अनवस्था दोष हो जायेगा। १. भगवतीसूत्र, २.१.९० ३. देखिये-प्रशस्तपाद भाष्य व्योमवतीटीका, न्यायमंचरी, २.मी, १३.४.४८१ प्रमाण प्रकरण, न्यायवार्तिक मावि अन्य।
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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