SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है और वह जन्म-मरण रूप संसरण करने लगता है। इस प्रकार जीव साधारणतः दो प्रकार के होते है-संसारी और मुक्त । संसारी जीव स बोर स्थावर के भेद से दो प्रकार के है । दो इन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीप स कहलाते हैं । तथा पृथ्वी, अप, तेज, वायु और वनस्पति कायिक जीव स्थावर कहलाते हैं। मात्मा के इस संसारी स्वरूप का वर्णन द्रव्यसंग्रह में बड़े सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। तदनुसार वह उपयोगमयी है, भामूर्तिक है, कर्ता है, सदेहपरिमाणवान् है, भोक्ता है, संसारस्थ है, सिट है, और उर्ध्वगति जीवो उवओगमओ अमुत्तिकता सदेहपरिमाणो। भोत्ता संसारत्यो सिखो सो विस्ससोडगई ॥ उपयोग का तात्पर्य है आत्मा जिससे शेय पदार्थ जाना जाता है। यह उपयोग दो प्रकार का है-दर्शनोपयोग और भानोपयोग। पदार्थ को देखने की शक्ति दशनोपयोग है और जानने की शक्ति ज्ञानोपयोग है। आत्मा का यह दर्शन-शान स्वभाव अविनश्वर है। कर्मों के कारण वह मावृत भले ही हो जाये पर नष्ट नहीं हो सकता। बात्मा कभी नेन्द्रिय के द्वारा पदार्थ को देखता है, कभी नेत्रों के अतिरिक्त अन्य इन्द्रियों द्वारा देख लेता है तो कभी कमों के क्षयोपशम के अनुसार वह अवषिदर्शन और केवल दर्शन से भी पदार्थ का दर्शन कर लेता है । इसको पारिभाषिक शब्दों में क्रमशः चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन कहा जाता है। ज्ञानोपयोग आठ प्रकार का है- मतिज्ञान, श्रुतमान, अवधिमान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान तथा कुमति, कुश्रुत और कुअवधि भान । उपर्युक्त चार प्रकार का दर्शन और आठ प्रकार का ज्ञान जीव का सामान्य लक्षण है। यह उसका व्यावहारिक स्वरूप है। शुद्ध स्वरूप में तो बह केवल-दर्शन और केवलशान मयी है। १.व्य संग्रह, गाथा २प्रमाणनय तत्वालोक, ७.५५-५६ पदवीन समुच्चय ४८४९; पन्बास्तिकाय, २५ भावपाहुर, १४८, पवला (१.१.१.२, पृ. ११९) मे बात्मा को बक्ता, प्राणी, मोक्ता, बेद, विष्ण, शरीर, मानव, सक्ता, जन्तु, मानी, योबी, मायी बादि अनेक शब्द मात्मा के पर्यायार्षिक रूम मे मिलते है। भगवतीसूम (१२.१०.४५६) में द्रव्य और पर्याय की दृष्टि से बात्मा के बाठ मेद किये गये। प्रख्यात्मा, कवायात्मा, योगात्मा, उपयोगात्मा, भानात्मा, दर्शनारमा, परित्रात्मा बौर वाला।
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy