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________________ शाश्वतवाद और बनाश्वतवाद जैनधर्म के क्रमशः निश्चयनय और व्यवहारतय के प्रतीक हैं । उखमाषातनिका मतों में आत्मा मरूपी (बरूपी बत्ता होति भरोगो परं मरणा) और चेतनशील (एकत्तसबी बत्ता होति) होता है। यह मत निगण्ठनातपुत्त महावीर का होना चाहिए । बुद्धपोष ने भी इस मत का उल्लेख किया है। पोट्टपाद ने भी इसी सन्दर्भ में आत्मा की बस्पता और चेतनता (बलपि खो अहं भन्ते बत्तानं पञ्चेमि सम्बामयं ति) का उल्लेख किया है । वसुबन्धु भी जैनों के इस मत से परिचित । जनदर्षन में जीव के इसी स्वरूप को स्वीकार किया गया है। वहां निश्चयनय और व्यवहारनय के आधार पर उसके लक्षण का विश्लेषण हुबा है । भगवतीसूत्र में जीव के २२ नाम मिलते हैं-जीव, जीवास्तिकाय, प्राण, 'भूत, सत्त्व, विज्ञ, वेद, चेता, जेता, आत्मा, रंगण (रागयुक्त) हिंएक, (गमनशील), पुद्गल, मानव, कर्ता, विकर्ता, जगत (गमनशक्ति), पन्तु, योनि, स्वयंभूत, सशरीरी, बीर नायक ।' इन नामों में आत्मा के दोनों तत्वों का विवेचन मिलता है द्रव्य तत्त्व और भावतत्त्व । पर द्रव्यतः जीव चेतन, बल्ली, शाश्वत, अनन्त, अस्तिकायिक और अच्छेध है । भावतः वह गुण-पर्यायात्मक है। मात्मा का स्वरूप : जैनदर्शन में जीव अथवा मात्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व है । यह एक अनुभूत तम्य है कि अहं,सुख,दुःख बादि तत्त्वों के लिए कोई एक भाषार होना आवश्यक है। यदि आत्मा को स्वीकार न किया जाय तो ये तत्त्व कहाँ रहेंगे? उसके बिना पड़ तत्त्व की भी सिद्धि नहीं हो सकती । जड़ तत्त्वों से चेतन तत्त्व भी उत्पत्ति हो नहीं सकती । पुनर्जन्म, स्मृति, मान, संशय आदि जैसी क्रियायें भी आत्मा को माने बिना बन नहीं सकतीं। बतः आत्मा के अस्तित्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। जीव का मूल लक्षण है उपयोग ।' उपयोग का तात्पर्य है चेतनतत्त। यह चेतनतत्व अनन्तवर्शन, मनन्तशान, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य नामक अनन्तपतुष्टय गुणों से युक्त है परन्तु ज्ञानावरणादि कर्मों के कारण उसका वह स्वरूप मावृत हो जाता है । उसकी विशिष्ट शक्तियां प्रच्छन हो पाती १. सुमंगलविलासिनी, प. ११० २. विज्ञप्तिमाता सिवि.पतुःशतकम्, १०-१० ३. अपवतीसूच, २०.२. ४. विशेषावश्यक माप, १५४९-१५५८ ५. उपयोगो प्रमणम, वत्सासूम, २-८ उत्तरामवन, २८.१.
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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