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________________ और द्वितीय ८२७ वर्ष बाद आर्य स्कन्दिल और वधस्वामी के समय । इन दुभिक्षों के कारण अस्त-व्यस्त हुई आगम परम्परा को व्यवस्थित करने के लिए बार्य स्कन्दिल के नेतृत्व में मथुरा में एक वाचना बुलाई गई। इसी समय हुई एक अन्य वाचना का भी उल्लेख मिलता है जो आचार्य नागार्जुन के नेतृत्व में बलभी में आयोजित की गई थी। मलयगिरि के अनुसार अनुयोगद्वार और ज्योतिष्करण्डक इसी वाचना के आधार पर संकलित हुए हैं । ___ माथुरी और वलभी वाचना के पश्चात् लगभग १५० वर्ष बाद पुनः बलभी में आचार्य देवधिगणि क्षमाश्रमण के नेतृत्व में परिषद् की संयोजना की गई और उसमें उपलब्ध आगम साहित्य को लिपिबद्ध किया गया। यह संयोजन महावीर के परिनिर्वाण के ९८० वर्ष बाद (सन् ४५३ ई.) हई। श्वेताम्बर परम्परा द्वारा मान्य आगम इसी परिषद् का परिणाम है । इसमें संघ के आग्रह से विच्छिन्न होने से अवशिष्ट रहे, परिवर्तित और परिवधित, त्रुटित और अत्रुटित तथा स्वमति से कल्पित आगमों को अपनी इच्छानुसार पुस्तकाल किया गया....श्री संघाग्रहात् . . . .विच्छिन्नावशिष्टान् न्यूनाधिकान् त्रुटिताबुटितान् आगमालोपकान् अनुक्रमेण स्वमत्या संकलय्य पुस्तकारूढान कृताः । ततो मूलतो गणधरभाषितानामपि तत्संकलनानन्तरं सर्वेषामपि आगमान् कर्ता श्री देवधिगणि क्षमाश्रमण एव जातः । पुनरुक्तियों को दूर करने की दृष्टि से बीच-बीच में अन्य आगमों का भी निर्देश किया गया। देवर्षिगणि ने इसी समय नन्दिसूत्र की रचना की तथा पाठान्तरों को चूणियों में संग्रहीत किया। कल्याण विजयजी के अनुसार बलभी वाचना के प्रमुख नागार्जुन थे । उन्होंने इस वाचना को पुस्तक-लेखन कहकर अभिहित किया है। दिगम्बर परम्परा में उक्त वाचनाओं का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इसका मूल कारण यह प्रतीत होता है कि श्वेताम्बर परम्परा के समान दिगम्बर परंपरा में अंगशान ने कभी सामाजिक रूप नहीं लिया। वहां तो वह गुरु-शिष्य परम्परा से प्रवाहित होता हुआ माना गया है। वस्तुतः वह वाचनिक परम्परा बौदों की संगीति परम्परा की अनुकृति मात्र है। १. श्वेताम्बर परम्परा इस घटना को महावीर निर्वाण के १७० वर्ष बाद मानती बार विवम्बर परम्परा १६२ वर्ष बाद । २. कहावली, २९८; कल्याणविजय मुनि-वी. नि. सं. और जैन कालगणना, पृ. १०४-१.. ३. समय सुन्दरपणी रचित सामाचारी शतक. ४. जन साहित्य का इतिहास : पूर्व पीठिका, पृ. ५४३ .
SR No.010214
Book TitleJain Darshan aur Sanskriti ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagchandra Jain Bhaskar
PublisherNagpur Vidyapith
Publication Year1977
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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