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________________ · जैन-दर्शन इदियों के द्वारा जाने हुए पदार्थ को मन के द्वारा विशेष रीनि से जानना श्रुततान है। अथान भगवान जिनेन्द्र देवने जो कुछ मोन मार्गका चा तत्वों का उपदेश दिया है-उसीको गणधर देवोंने रचनात्मक बनाकर प्रकट किया है वही श्रुतनान कहलाता है। हम नजानके बारह भेद हैं जो बारह अग कहलाते हैं । अत्यंत संज्ञपसे इनका स्वरूप इस प्रकार है। १-याचारांग-यह इतनानका पहला अंग है इसमें मुनियों की चर्याका वर्णन है । गुनि समिति शुद्धियों श्रादि का वर्णन है। -सूत्रकृतांग-जानविनय, वेदोपस्थापना, व्यवहार, धर्म, दिया का वर्णन है। ३-न्थानांग-अनेक न्यानों में रहने वाले पदार्थों का वर्णन है । 2-समवायांन-इसमें द्रव्य क्षेत्र कान नावों का समवाय बताया है । नथा धर्म, अधर्म, लोक, एक जोव उनके समान प्रदेश हैं । जंबूद्वीप, सर्वार्थसिद्धि अप्रतिष्ठान नरक, नहायर होपको बावडियां लमान हैं। उत्सर्पिणी अवसर्पिणी का काल ममान है । शायिक सन्यस्त्व, केवलनान, केवलदर्शन, यथाख्यान चारित्र के भाव समान है। ५-व्याख्याप्रशनि-साठ हजार व्याकरण तथा अस्ति नास्ति का वणन है। ६-नानधर्मकया-अनेक प्रकार की कथाओं का वर्णन है।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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