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________________ ----- - -- - - -- -- - -- - -- - - - -- जैन दर्शन ७-उपासकाध्ययन-- श्रावों की क्रिया व्रत श्रादि का वर्णन है। ८-अंतरा-प्रत्येक तार्थकरके सन य में दश दश मुनि घोर उपसर्ग सहनकर मोक्ष पधारे उनका वर्णन है। ६-अनुत्तरोपपादिक दश-प्रत्येक तीर्थकर के समय में दश दश मुनि घोर उपसर्ग सहनकर विजयादिक में उत्पन्न हुए उनका चणेन है। १०-प्रश्न व्याकरण - श्राक्षेप विक्षेप, हेतु. नय, इनके आश्रित होने वाले प्रश्नों का व्याकरण बतलाया है। ११-विपाक सूत्र पुण्य पापका उदय बतलाया है। १२-दृष्टिवाद-अनेक मत मतान्तरों का तथा तीनसौ तिरेसट मिथ्यामतों का वर्णन है। __ इस बारहवें अंगके पांच भेद हैं परिकर्म सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वरात, चूलिका । इसमें से पूर्वगतके चौदह भेद हैं । यथा--- १-उत्पाद पूर्व-इसमें काल मुद्गल जीवादिक द्रव्यों की पर्यायों का वर्णन है। २-श्राग्रायणी-क्रियावादियों की प्रक्रियाका वर्णन है । ३-वीर्य-प्रवादास्थ, केवली, इन्द्र, चक्रवर्ती श्रादिके बलका वर्णन है। ४-अस्तिनास्तिप्रवाद-इसमें समस्त पदार्थों का अस्तित्व नास्तित्व आदि अनेक अंगोंका निरूपण है।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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