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________________ - - - जैन-दर्शन २४३] ढले में है ही क्योंकि ढेला भारी होने के कारण नीचे की ओर ही गिरता है । इसी प्रकार मिट्टी के ढेले में वा पत्थर के टुकड़े में साध्य साधन दोनों है । इसलिये हमारा दृष्टांत साध्य सांधन रहित नहीं है। इसलिये कहन' चाहिये कि जिस प्रकार "यह पृथ्वी ऊपर की ओर भ्रमण करती है वा नीचे की ओर भ्रमण करती है" इस प्रकार कहने वाले किसी भी वादी का कहना सत्य नहीं है उसीप्रकार "यह पृथ्वी भ्रमण करती है। इस प्रकार कहने वाले वांदी का कहना भी सत्य नहीं है । इसके सिवाय यह भी समझना चाहिये कि यदि भू भ्रमण को कहने वाला कोई आगम सत्य है तो फिर जो भागम भू भ्रमण को नहीं मानता वह सत्य क्यों नहीं होना चाहिये। क्योंकि भू भ्रमण न मानने से भी बिना किपा भेद के ज्योतिर्ज्ञान की पूर्ण रूप से सिद्धि हो जाती है । .यदि दोनों आगमों को सत्य माना जायगा तो फिर दोनों का परस्पर विरोध रहित अर्थ किस प्रकार निकल सकता है । यदि परस्पर विरुद्ध दोनों अंगों को सत्य मान लिया जायगा तो फिर बुद्ध और ईश्वर के समान वे दोनों प्रकार के आगम को कहने वाले प्राप्त (सर्वज्ञ हितोपदेशी) नहीं हो सकते । अतएव कहना चाहिये कि भू भ्रमण को कहने वाला आगम सत्य नहीं है और इस प्रकार यह पृथ्वी स्थिर है, भ्रमण नहीं करती। - आगे मतांतर दिखलाकर उसका निराकरण करते हैं । :: भू भ्रमण वादी कहता है कि जैनियों की मानी हुई पृथ्वियां भी वायु के आधार मानी हैं। तथा वायु कभी. स्थिर नहीं रह
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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