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________________ इन्दो अनमयात ही नमुद में दरदेव रहते हैं नया न भरत क्षेत्र में मानसी न योन की चाई पर और नत्र सूर्य चन्द्रमा अदि है ये सब क्योति देवों में बिमान है। इनमें योनिर्गदेव रहते हैं के पर्वत के सर जे लोक है इसमें मंहवर्ग हैं, उनकार नव प्रेयर हैं. उन कर नर अनुदा है और उन पर पांव अनुनर है : सदले जबर माह इन अमन्यात ही समुद्रों में अग्यात ही मूर्य चन्द्रमा है दया उनसे भी बहुत अविरह नहान दार हैं। टाईटी. सूर्य चन्द्रमा प्रादि सब यमने रहते हैं और आगे के दुर्य पदमा श्रादि नवन्दिर हैं। इन प्रकार या लोक भाकारा के मध्यभाग में वायु के श्राधार पर स्थित है । इस लोकमार के चारों ओर बीस बीस हजार योजन माटी तीन प्रकार की यायु है भनोदपि वान बननत और दनुवान उनका नाम है । नीनं श्री चौहाई साठ हजार योजन है। जिस प्रकार यहां पर छोटी सी दनुयात नानकी काय के श्रधार पर बादलों में असंख्यान मन पानी मया रहता है वली प्रकार यह लोकापरा भी बहुत पनी ना हजर योजन चोटी या के प्राचार पर स्थिर है । यह वायु ताराकारा के चारों ओर है इसलिये यह लोगाकाश रंचनान भी यर यर नहीं हिल सना । इस प्रकार यह ले.काश प्रनदि कालसे पता था रहा है
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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