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________________ १६८] जन-दर्शन अस्थिर-जिसके उदय में धातु अधातु अपने ठिकाने पर न रहें. विनित हो जाय। श्रादेय-जिसक. उदय में शरीर पर प्रभा और फाति रहे। अनादेय-जिसके उदय से शरीर पर प्रभा श्रीर कानि न रहे। यशः कीनि-जिमके उदय में संमार में कोनि पल । अयशः कोनि - जिसके उदय से संसार में अपयश बने। तीर्थफरत्य-जिसके उदय से परहंत पद में भी नीकर द प्राप्त हो। इस प्रकार नाम कर्म की तिरान प्रतियां हैं और ये अपने अपने उदय के अनुसार काम करती हैं। गोत्र फर्म-जिसके उदय से ऊँच नीच गोत्र प्राप्त हो। इसके दो भेद है:-उंच गोय, नीच गोत्र। 'च गोत्र-जिसके उदय से लोकमान्य ऊचे कुल में उत्पन्न हो। नीच गोत्र-जिसके उदय से लोकनिदित नीच कुल में उत्पन्न हो। धंतराय कम-जिसके उदय से विन 'प्राजांय । इसके पांच भेद हैं:- दानांतराय, लाभांतराय; भोगांतराय, उपभोगांतराय, वीर्या तराय।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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