SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६७), जैन-दर्शन अशुभ-जिसके उदय से शरीर के अवयव सुन्दर न हों। सुस्वर-जिसके उदय से स्वर मीठा हो। दुःस्वर-जिसके उदय से स्वर मीठा न हो। सूक्ष्म-जिसके उदय से शरीर अत्यंत सूक्ष्म हो जो न किसी से रुके न किसीको रोक सके, लोहा पत्थर में से भी निकल जाय। स्थूल-जिसके उदय से शरीर स्थूल हो, जो दूसरे से रुक जाय वा दूसरे को रोक सके । इसको वादर भी कहते हैं । पर्याप्तक-जिस के उदय से पर्याप्तियों x की पूर्णता प्राप्त हो । अपर्याप्ति-जिसके उदय से पर्याप्ति पूर्ण होने के पहले ही मरण हो जाय, पर्याप्ति पूर्ण न हों। स्थिर-जिसके उदय से धातु उपधातु अपने ठिकाने पर बने रहें, अनेक उपवास करने पर भी विचलित न हों। ४ पर्याप्त छह हैं । अाहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन । एकेन्द्रिय जीवों के बाहार शरीर इन्द्रिय श्वासोच्छ्वास ये चार पर्याप्तियां होती हैं । दो इन्द्रिय ते इन्द्रिय चौ इन्द्रिय और असेनी पंचेन्द्रिय जीवों के भाषा मिला कर पांच पर्याप्तियां होती हैं । और सैनी पचेन्द्रिय जीवों के छहों. पर्याप्ति होती हैं, जन्म लेने के स्थान पर पहुंचने के अन्तर्मुहूर्त बाद ही सब पर्याप्तियां पूर्ण हो जाती हैं।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy