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________________ - १४२] जैन-दर्शन यह पुद्गल अनेक प्रकार से जीवों का उपकार करता है । यथा जीवों का शरीर पुद्गल से बनता है, वचन मन पुद्गल से बनते हैं, श्वासोच्छ्वास वायु रूप पुद्गल से बनता है, इष्ट अनिष्ट रूप अनेक प्रकार के पुद्गलों द्वारा जीवों को सुख वा दुःख पुद्गल ही पहुंचाता है, श्रायुरूप पुद्गल के द्वारा जीवित रखता है और आयु रूप पुद्गल जब जीवसे हट जाता है तो मरण कहलाता है । यह सब पुद्गल का जीव पर उपकार है । इसके सिवाय पुद्गल परस्पर भी उपकार करते हैं । जैसे बालू वा भस्म से वतेन शुद्ध होते हैं, पानी से कपडे धुलते हैं तथा और भी परस्पर अनेक उपकार होते हैं। जिस प्रकार जीवमें चलने की शक्ति है उसी प्रकार पुगल में भी चलने की शक्ति है और वह बहुत ही प्रबल वेग से चलते हैं। विजली पुद्गल है और वह हजारों लात्वों मील बहुत ही थोडे समयमै पलक मारते ही पहुंच जाती है। बिजली के साथ चलने वाले शब्द भी उसी प्रकार प्रबल वेग से पहुंच जाते हैं। वायु पुद्गल है और वह सदा चलता रहता है । जो पदार्थ इन्द्रिय गोचर हैं. इन्द्रियों से जाने जाते हैं वे सब पुद्गल हैं। धर्म द्रव्य-यह एक अखंड और अमूर्त द्रव्य है और जीव पुद्गलों के चलने में सहायक होता है। जिस प्रकार मछली में चलने की शक्ति है तथापि वह बिना पानी के नहीं चल सकता । सी प्रकार जीव पुदलों में चलने की शक्ति है तथापि वे धर्म द्रव्य की सहायता से ही चलते हैं। जिस प्रकार पानी मछली को
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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