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________________ जैन-दर्शन सुखो व पुण्यवान हैं। सबसे ऊपर के विमान के देव मनुष्य गति में जन्म लेकर मोक्ष प्राप्तकर लेते हैं। 'जीवों के भाव-जीवों के भाव पांच प्रकार हैं। औपशामक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदायिक और पारिणामिक । जो भाव कर्मों के उपशम होने से होते हैं उनको औंपशामिक भाव कहते हैं। ऐसे भाव दो हैं । एक औपशर्मिक सम्यग्दर्शन और दूसरा औपशर्मिक सम्यक् चारित्र । सम्यग्दर्शन को घात करने वाली प्रकृतियों का उपशम होने से औपशामिक सम्यग्दर्शन होता है तथा मोहनीय कर्म के उपशम होने से औपशमिक सम्यक् चारित्रं होता है। जो जीव के भाव कर्मों के क्षयोपशम से होते हैं उनको क्षायोपशामक कहते हैं। ऐसे भाव अठारह हैं । ज्ञान, दर्शन, लब्धि, अज्ञान, सम्यक्त्व, चारित्र, संयमासयम, । मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान मनः पये ज्ञान ये चार ज्ञान क्षायोपशंमिक हैं । कुमतिज्ञान, कुश्रुत ज्ञान, कुंअवधिज्ञान ये तीन अज्ञान क्षायोपमिक हैं। चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन अवधिदर्शन ये तीन दर्शन क्षायोपशमिक हैं। पांचों लब्धियां क्षायोपशर्मिक हैं। जिस जीवके जितना क्षयोपशम होता है उतने ही दान लाभ आदि उनको प्राप्त होते हैं । सम्यक्त्व चारित्र और संयमासंयम ये तीनों भी उनको घात करने वाले कर्मों के क्षयोपशम से प्राप्त होते हैं। क्षायिक भाव के नौ भेद हैं:-ज्ञान दर्शन दान लाभ भोग उपभोग वीर्य सम्यक्त्व चारित्रं । ये नौं क्षायिक भाव केवली भगवान् के होते हैं । समस्त ज्ञानावरण कम के क्षयसें केवल ज्ञान होता है । समस्त दर्शनावरण कर्म के क्षय से केवल .
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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