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________________ - - - - - - - - - - - जैन-दर्शन १२१] लीन रहना चाहिये । प्रोपधोपवास के दिन विना देखे विना शोधे ' पूजन के उपकरण, शास्त्र वा अन्य कोई पदार्थ उठाना रखना उपवासका अनादर करना वा भूल जाना दोप है। उपवास करने वालों को ये दोप कभी नहीं लगाने चाहिये । भोगोपभोगपरिमाण-भोजन पान आदि जो पदार्थ एकही वार काम में आते हैं उनको भोग कहते हैं तथा वस्त्र आभूपण आदि जो पदार्थ वार बार काममें आते हैं उनको उपभोग कहते हैं। इन सब पदार्थों का परिमाण नियत कर लेना भोगोपभोगपरिमाण व्रत है। इनमें से कुछ पदार्थ तो ऐसे हैं जिनका जन्म भर के लिये त्याग कर देना चाहिये । यथा-कंद मूल अदरक मक्खन, फूल आदि पदार्थों के सेवन करने से अनेक जीवोंका घात होता है इसलिये इनका त्याग सदा के लिये कर देना चाहिये । मद्य मांस शहद के सेवन करने से अनेक त्रस जीवोंका घात होता है इसलिये इनका तो कभी स्पर्श तक नहीं करना चाहिये। प्रमाद उत्पन्न करने वाले भांग धतूरा आदिका सर्वथा त्याग कर देना चाहिये । जो पदार्थ काम में अनेि योग्य हैं उनमें भी जो अनुपसेव्य हैं भले आदमी जिनको काम में नहीं लाते उनका त्याग कर देना चाहिये तथा जो हानिकारक अनिष्ट पदार्थ हों उनका भी त्याग कर देना चाहिये। त्याग करने के लिये यम और नियम दो प्रकार से त्याग किया ___ जाता है। सदा के लिये जो त्याग होता है उसको यम कहते हैं
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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