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________________ - जन-दर्शन प्रोपधोपवास-प्रत्येक महीने में दो अष्टमी और दो चतुदेशी रे चार पर्वदिन कहलाते हैं। इन चारों पर्वके दिनों में उपवास वा प्रोषधोपवास करना चाहिये । प्रोषध शब्दका अर्थ एकाशन है और उपवासका अर्थ चारों प्रकारके आहारका त्याग का देना है। प्रोपधोपवास करने वाले को एक दिन पहले और एक दिन पीछे एकाशन करना पड़ता है। जो श्रावक अष्टमी को प्रोषधोपवास करता है उसको सप्तमी के दिन एकाशन करना चाहिये अष्टमी के दिन उपवास करना चाहिये, और नौवीं को फिर एकाशन करना चाहिये । इस प्रकार दो पहर सप्तमी के चार पहर सप्तमी की रात्रि के, चार पहर अष्टमी के, चार पहर अष्टमी के रात्रि के और दो पहर नौवीं के एकाशन के पहले के, इस प्रकार सोलह पहरका उपवास हो जाता है । जो प्रोषधोपवास नहीं करता वह सामो को शामको नियम ले लेता है। सप्तमी की रात्रिके चार पहर अष्टमी के चार पहर और अष्टमी की रात्रिके चार पहर, इस प्रकार वह उपवास वारह पहरका हो जाता है। यदि वह सप्तमो के शाम को नियम करना भूल जाय तो वह अष्टमी के प्रातःकाल नियम कर सकता है । ऐसा उपवास आठ पहर का होगा। जिसको उपवास करने की शक्ति न हो वह एकाशन भी कर सकता है। नियम लेने के अनंतर उसे प्रायः जिनालय में रहना चाहिये, पांचों पापों का त्याग कर देना चाहिये, स्नान, गंध माला, पुष्प अंजन आदिका त्याग कर देना चाहिये, उस दिन धर्मोरदेश देना चाहिये वा सुनना चाहिये, अथवा ज्ञान ध्यान में
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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