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________________ जैन-दर्शन EE] रात्रि-भोजन-त्याग-डांस मच्छर पतंगा आदि अनेक जीव रात्रि में ही निकलते हैं, जो रात्रि में किसी प्रकार दिखाई नहीं पड़ सकते । बदि रात्रिमें अधिक प्रकाश किया जाय तो वे जीव प्रकाश को देखकर और अधिक मात्रा में आते हैं और वे प्रकाशपर तथा भोजन में बहुत अधिक मात्रा में गिर पडते हैं । उनमें से बहुत से जीव ऐसे हाते हैं जो दिखाई तक नहीं पडते, यदि समुदाय रूप से दिखाई भी पड जाय तो वे भोजन में से कभी किसी प्रकार भी अलग नहीं किये जा सकते । उन जीवों में अनेक जीव विपैले भी होते हैं जो भोजनमें मिलकर पेट में चले जाते हैं तथा अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न कर देते हैं। जो श्रावक सम्यग्दृष्टी होता है और जोव दयाको पालन करता है, वह कभी भी रात्रि में भोजन नहीं कर सकता । इसके सिवाय रात्रि भोजन स्वास्थ्य के लिये भी अत्यंत हानिकर है। दिनमें खालेने से सोते समय तक उसका परिपाक हो जाता है तथा सोते समय पचाने वाले यंत्रों को भी अवकाश मिल जाता है । इसलिये रात्रि भोजनका त्याग कर देना इस लोक और परलोक दोनों लोकों में कल्याण करने वाला है। - पांचों उदंबरोंका त्याग-पीपरका फल, बडका फल, गूलर, प कर और अंजीर ये पांच उदवर फल कहलाते हैं। इन फलों के भीतर अनेक उड़ने वाले बस जीव रहते हैं, तथा अनेक सूक्ष्म जीव रहते हैं । इनके भक्षण करने से वे सब जीव मर जाते हैं और पेट में चले जाते हैं। इसलिये इन फलोंका भक्षण करना
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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