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________________ १०० ] जैन-दर्शन मांस भक्षण के समान है। फिर भला दयालु सम्यग्दृष्टी इन फलों को भक्षण कैसे कर सकता है ? किसी भी दयालु पुरुष को इनका भक्षण नहीं करना चाहिये। इसलिये इनका त्याग कर देना ही आत्मा का कल्याण करने वाला है । 4 पांचों परमेष्ठियों को नमस्कार करना:- पांचों परमेष्ठियों का स्वरूप सम्यग्दर्शन के प्रकरण में बतला चुके हैं । अरहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय और साधु ये पांच परमेष्ठी कहलाते हैं, तथा इन पांचों परमेष्ठियों का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन बतलाया है । सम्यग्दर्शन के अनंतर ही मूलगुरण धारण किये जाते हैं । इसलिये मूलगुणों को धारण करने वाला इन पांचों परमेष्ठियों का श्रद्धान करता है, उनको प्रतिदिन नमस्कार करता है. प्रतिदिन उनकी भक्ति करता है, प्रतिदिन उनकी पूजा करता है और प्रतिदिन उनकी स्तुति करता है । सम्यग्दृष्टि श्रावक उन पंच परमेष्ठी की प्रतिमा के दर्शन किये विना उनकी भक्ति स्तुति पूजा आदि किये विना कभी भोजन नहीं करलेला है। जो गृहस्थ देव दर्शन किये बिना भोजन कर लेता है वह कभी भी पांचों परमेष्ठियों का श्रद्धानी वा सम्यग् वा बैन धर्म को पालन करने वाला नहीं कहा जासकता । इसलिये श्रावक के लिये देव दर्शन करना और उनकी भक्ति स्तुति पूजा आदि करना अत्यावश्यक है । जीवदया - सम्यग्दृष्टी पुरुष आत्म-तत्त्वका श्रद्धान करने वाला और उसके यथार्थ स्वरूप को जानने वाला होता है । तथा वह
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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