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________________ - - - - - - - - . जैन-दर्शन कराऊंगा, न अनुमोदना करूंगा। इस प्रकार के त्याग को प्रत्याख्यान कहते हैं। व्युत्सर्ग-मुनिराज देवसिक, रात्रिक, पाक्षिक, मासिक, चातुमासिक, सांवत्सरिक की क्रियाओं में नियत समय तक सत्ताईस श्वासोच्छ्वास तक या एकसौ आठ श्वासोच्छवास तक अपने शरीर से ममत्व का त्याग कर देते हैं और उस समय भगवान जिनेन्द्र देवके गुणों का चितवन करते हैं अथवा सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र, धर्म्यध्यान, शुक्लध्यान आदिका चितवन करते हैं । इस प्रकार शरीर से ममत्व के त्याग को व्युत्सर्ग कहते हैं। इस प्रकार वे छह आवश्यक हैं । इनको मुनिराज प्रतिदिन अवश्य पालन करते हैं। केशलोंच-केशलोंच का अर्थ बालों को उखाड़ फेंकना है। मुनिराज बालों को न बढाते हैं न बनवाते हैं । यदि वे बढाते हैं तो अनेक जंतु पडजाते हैं तथा मर जाते हैं इसी जंतु बाधा के डर से वे बालों को बढाते नहीं हैं। यदि वे बालों को बनवावें तो उन्हें याचना करनी पड़ती है। परन्तु मुनि लोग याचना के सर्वथा त्यागी होते हैं। इसलिये वे किसी से याचना नहीं करते और न बालों को बनवाते हैं। वे मुनिराज उत्कृष्ट दो महीना बाद, मध्यम तीन महोने के बाद और जघन्य चार महीने के बाद अवश्य केश लोंच करते हैं। दाढी, मूछ और मस्तकों के बालों का लोंच करते हैं । कांख और नीचे के बालों का लोंच नहीं करते, तथा इन दोनों स्थान के बाल अधिक वडते भी नहीं हैं। केशलोंच करने में
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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