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________________ 00000 सहतीरहीद्र पदात्मजा दुःख नाथ संग वनके सभी, तजकर उन्हें चाहा न उसने पितृ-कुलका सुख कभी आजन्मके भी शीलवतको पाल सकती थीं यहां, ब्राह्मी तथा सुन्दरिसहश थीं पूज्य बालायें यहां गुरुओंके अपमानका अवसर देखने लगा। दैववशात् एक दिन , शिकार करते हुये राजाने दिगम्बर जैन मुनिको देखा । उसे देखकर क्रोधका ठिकाना नहीं रहा । अपने ५०० शिकारी कुत्ते उसने मुनि के ऊपर छोड़ दिये, किन्तु वे श्वान मुनिके पास जाते ही बिलकुल शान्त हो गये। महाराजका क्रोध और भी उत्तेजित हुआ उन्होंने मरा हुआ साप मुनिके गलेमें डाल दिया। सातवें नरककी स्थितिका बंध किया। ___ तीन दिन बाद अपनी पाप कथा रानीको सुनाई। रानीने राजाको खूब ही धिक्कारा! रातमें हो राजा रानी मुनिके पास गये, मुनिको निष्कम्प देख करके राजाको बड़ा ही आश्चर्य हुआ। प्रातःकाल होते ही मुनिने दोनोंको धर्मवृद्धि दी। जिससे राजाके मनमें मुनिके प्रति अपूर्ण श्रद्धा उत्पन्न हो गई। __चेलनाके ही प्रभावसे मनिराजके दर्शन हुये। विशेष हाल जाननेके लिये श्रेणिक चरित या महारानी चेलना देखना चाहिये। लेखक। १ बाझी और सुन्दरी भगवान आदिनाथकी पुत्रियां थीं भगवानने स्वयं इन्हे विद्याभ्यास कराया था। दोनो ही वाल प्रक्षचारिणीरहीं।
SR No.010211
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunbhadra Jain
PublisherJinwani Pracharak Karyalaya Kolkatta
Publication Year1935
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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