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________________ २० उनकी कृपासेही सहज सधता यहाँ अपवर्ग था । मगधाधिपति किसकी कृपासे बौद्धसे जैनी वना, आता न वह सन्मार्ग पर होती नहीं यदि चेलना १ । 3 चलना महाराज श्रेणिककी मर्द्धाङ्गिनी थी, महाराज बौद्ध धर्मका पालक था और महारानी जैन धर्मकी सच्ची उपासिका थी । महाराज रानीको निजरूप बनाना चाहते थे और रानी महाराजको जैन बनाना चाहती थी। दोनोंमे ही खूब वाद विवाद होता था महाराजको उसकी प्रवल युक्तियोसे निरूत्तर हो जाना पड़ता था । एक दिन महाराजके प्रासादमें बौद्ध-गुरु आये, वे महारानी चेलना को जैन धर्मके विरुद्ध उपदेश देने लगे। जैन-गुरु नंगे रहते हैं उन्हें एक अक्षरका भी ज्ञान नहीं हैं। हम लोग सर्वज्ञ हैं अतएव कलसे हमीको मानना चाहिये । रानीने कहा, ठीक कलसे में आपको ही अपना गुरु मानूंगी। दूसरे दिन चे साधु फिर आये, आहार करनेके लिये राजमहलमे बैठे कि इतनेमे ही रानीने दासी द्वारा उनका एक जूता मंगाकर औरवारीक पीस करके भोजनमे परोस दिया । साधु लोग नया मिष्ठान्न समझ कर बड़े आनन्दले उसे खा गये । पश्चात् वे लोग मठमें जाने लगे, अपना एक जूता न देखकर बड़े ही हैरान हुये । तव रानीने कहा "आप लोग तो कल सर्वज्ञ वनते थे इस समय तुम्हारी सर्वज्ञता कहां चली गयी है ? वस्तु तुम्हारे पास ही है। वे ललित साधु चुपचाप चले गये । पर इस अपमानसे श्रेणिकको बड़ा ही दुःख हुआ वह जैन
SR No.010211
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunbhadra Jain
PublisherJinwani Pracharak Karyalaya Kolkatta
Publication Year1935
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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