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________________ १६: जैन स्त्रियां । थे देव यदि इस देशके तो नारियां थीं देवियां, यों कर न सकतीं थीं उन्हें पथसे चलित आपत्तियां अवला कहाके शील-रक्षणमें सदा सबला रहीं, विद्या तथा चातुर्यतामें वे सदा प्रबला रहीं । प्राणेशको तज अन्यको चाहा न उनने स्वप्रमें, तजना प्रभूको दुःखमें चाहा न उनने स्वप्न में । रहकर स्वपति के साथ में दुःखको न दुःख माना कभी, प्राणेश सेवामें सदा ही धर्म निज जाना सभी । मृदुदर्भ शैय्या थी उन्हें पति साथमें सुखकर बड़ी, उनके बिरहमें पुष्प- शैय्या थी धरासे भी कड़ी। अतिशय निपुण थीं देवियां अपने भवनके काममें, होती न थी किंचित् कलह उनसे कभी भी धाममें पति सेव कहते हैं किसे बतला दिया इस विश्वको, सतेज अपने शीलका जतला दिया इस विश्वको पति देव सेवामें प्रथम मैना सती आदर्श है, पावन हुआ सन्नारियोंसे भव्य भारतवर्ष है । अतिव हृदयों को पलटनेकी उन्हींमें शक्ति थी. निज इष्टदेवोंके प्रति उनकी सतही भक्ति थी। उन देवियोंसे एकदिन सुन्दर-सदन शुभस्वर्ग धा,
SR No.010211
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunbhadra Jain
PublisherJinwani Pracharak Karyalaya Kolkatta
Publication Year1935
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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