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________________ जैन भजन नरंगनी २२ रानो विजियासुन्दरी का राजा को राज्य और प्रजा को रक्षा के लिये विषय भोगों को छोड़ने के लिये राजनीति का उपदेश करना। (चाल ) मन पड़े जाएगा एक दिन बुजबुले नाशाद का। ग्रहन करलो राजनीति के जरा पैगाम को। छोड़ दो परजा की खातिर ऐश को आराम को । १ । है प्रजा के दुखमें दुख आराम में आगम है ।।। छोड़ दो देखो पती दुनिया के झुटे नाम को । २१ धार्मिक राजा है वह और धर्म का अवतार है। धर्म पर चलता है जो तजकर विपय को काम को। ३ । अपने सुख के कारण छोड़ो नहीं इस राज को ।। सोच तो लीजे: जरा इस काम के अंजामको ।। ४ ।। रानी का राजा को समझाना। (घास ) युवायां फैली मुसीयनों में यह ताज याने पड़े हुए हैं। जगत में सुखका उपाय क्या है जरा तो सोचो विचार करके। किसी ने संख आज तक न पायाधम को दिलमे विसार करके १ विपों में नुकसान है सरासर जो फायदा है तो है धरम में । अगरनं मानो तो आजमालों भामका चश्मास्तार करके २॥ धर्मार्थ काम और मोक्ष चारा यही तो सुखके निशां बताए । इनही को पुरुषार्थ कह रहे हैं ऋपी मुनीजन पुकार करके ॥ सुखोंका करता यही धरम है दुखों का हरता यही धाम है।
SR No.010209
Book TitleJain Bhajan Tarangani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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