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________________ जैन मलन तरंगनी। धरम वही है कि फर्ज अपना अदा करे जो संवार करके ४ ॥ धरम है राजाका राज करना न्याय नीति से कार्य करना। गुणीजनों की समाज करना जो कुछ भी करना संभार करके ५ प्रजा को अपनी खुशहाल करना जो दुष्ट हो पायमाल करना। देश उन्नति का खयाल करना सुखोंको अपने निसार करके ६ मिले न राहत किसीको न्यामत धरम का मारग बिसार करके। विषों में निशदिन गुजार करके या राज अपना विगार करके ७ ‘मंत्री का राजा को समझाना। ( चाल ) सनो सावन बहार आई झुलाए जिसका जी चाहे। राजको छोड़ करके सुख नहीं पाया किसी नर ने ।। न ऐसा करना बतलाया किसी मत के शास्तर ने । १। गँवाई हाथ से सीता कहीं मारे फिरे बनमें ।। राज को छोड़कर सुख क्या लिया श्रीरामचन्दर ने ॥२॥ पांच पांडव भी ना नोकर बने वैराट राजा-के॥ बनाई द्रोपदी बांदी राज तजकर युधिष्टर ने ॥ ३ ॥ सही लाखों मुसीवत राज तजकर देख लो राजा ॥ ... सत्ती दमयंती रानी और राजा नल बहादुर ने ॥ ४ ॥. पड़ा सागर चढ़ा शुली हुवा था भेट देवी की ॥ . . तजा जव राज पद श्रीपाल कोटीभट दिलावर ने ॥ ५॥ . १ न्योछावर करना। . . . .. ..
SR No.010209
Book TitleJain Bhajan Tarangani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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