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________________ जैन भजन नरंगनी। गधे को अस्व और गीदड़ को पंचानन समझते हो ॥४॥ दुर्योधन को धरमसुत पीत को कंचन समझते हो। ऊंट को फील दशानन को तुम लछमन समझते हो ।॥ ५॥ आग को नीर समझा है रात को दिन समझते हो। काग को हंस नागन को हार चंदन समझते हो ॥६॥ न्यायमत जो हितेपी है उसे दुशमन समझते हो ॥ दगावाज और कमीने गैर को साजन समझते हो ॥ ७॥ २१ मंत्री का राजा को समझाना। (चाल) सखी सावन बहार आई झुनाए जिसका जी चाहे । बना देता है राजा देख वदजन लोभ सज्जन को । सखी धर्मात्मा पंडित मुनीजन को गुणीजन को। १ । राजका काम टेढा है बड़ा राजा समझ लीजे ।। लोभ कर देता है वदजन न देखे गुणको अवगुण को ॥२॥ लोभ ने कर दिया अंधा देख केकई सी रानी को ! निकाला उसने बनमें रामको सीता को लछमन को ३ ॥ जलाने के लिये भेजा था दुर्योधन ने मंडप में। युधिष्टर को नकुल सहदेव कुंती भीम अर्जुन को ॥ ४॥ कतल कर देता है लोभी पिता को और माता को। . बहन को भाई को नाती संगाती यार साजन को। ५। बिलाशक पाप का है बाप लालच न्यायमत देखो। मिटा देता है लोभी लोभ में तन मनको और धनको । ६।
SR No.010209
Book TitleJain Bhajan Tarangani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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