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________________ ( ५६ ) + १६ ॥ हूं दादौ ने अंत, हन्तो दृष्ट नें कंत । आपण गोडती ए । अलगो नहीं छोडतो ए ॥ २० ॥ संच्या पून्य ना घाट । नहीं कोई दुःख उचाट । तुम कहो सही ए । वा देवलोके गई ए ॥ २१ ॥ देवलोक थो आय । दादी कहै मोय वाय ॥ पोता धर्म करो ए । इसी कहै जो मोय । तर मांहरो ए । मंत गुरु कहै सांभल गये । ओ मारग खगे ए ॥ २२ ॥ शंका न करूं कोय ॥ नहीं झाल्यो सो खरे ए || २३ || कोई देव पूजा नें नाय । खान मंजस करौ ए । धूप धारगो धरौ ए ॥ २४ ॥ सेथखाना में मांय । कोई आवो मधारी ए । मोसुं बातां भङ्गो कहै इम वाय ॥ करो ए ॥ २५ ॥ तो जाय के नहीं जाय । उत्तर दे मुझ राय । किम जाय अशुच भयो ए । अछवाई घणौ ए ॥ २६ ॥ गुरु कहै सांभल एम । दादौ आवे फेम | दुर्गंध इहां तगौ ए । उंची नाय घणो ॥२१॥ 1 पांच सें जोजन लग जाय । देव न सके आय | नेह लगे तवे ए। मुखां मगन हुवे ए ॥ २८ ॥ मुहूर्त नाटक सार । वर्ष जाथ दोय हजार | पूछे कि भणी ए । मोठ्यां खमै घणी ए ॥ २८ ॥ पल्य सागर नी स्थित " 기 1 मेले देव्यां सुरौं चित्त । मोह रह्या सही एक आय स नही ए ॥ ३० ॥ इम जायो राजान | जूदा नीव काय
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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