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________________ मान । राजा कहै बलि ए । बुद्द थारो निरमली ए। ____३१ ॥ ज्ञानी पुरुष को श्राप । जान तणे प्रताप । हेत भेलो सही ए । मोय हिरदे बेसे नहौं ए ॥ ३२ ॥ - - ॥दोहा॥ नौजो प्रश्न गुरू प्रते, वलि पूछ राजान। .' एक दिवस्त्र सभा मके. हूँ बेठो करौ संडाय ॥१॥ सेठ सैन्यापति मंत्रवी, देखता सहु काय। . कोटवाल दूक चोरटो, आछौ सृप्या मोय ॥२॥ पारख्या करवा भणी, घाला कोरठी मांय । .. ऊपर ढाक्यो ढांकणो, छेक न सख्या काय ॥३॥ लोह कोठी लोह ढांकणो, सौसा सुं रे जड़ाय । रख वाला राख्या बलि, ओछ न रखी काय ॥४ उण कोठी रो ढांकणो, किणही उत्तायो नांय । , चोर मओ तिण काठिये, ठीक न पड़ी काय ॥५॥ , जीव वाहर थौ निसरे, कोठी पड़ तो छेक । जीव कायर मानत जूदा, श्रद्धत बात विशेष ॥६॥ छिद्र न पड़ियो कोठिये, किम मानु हूं. बात। जीव काया एकहीज छै, कूड़ नहीं तिल मात ॥
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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