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________________ hase! " ( ५४ ) ॥ दोहा ॥ पूरै इग्यारा प्रश्न, गुरु प्रवे राजान | गुरु उत्तर दे कि बिध भलो, गुण सागर बुद्धवान |१| पूछे प्रश्न पहलड़ो, राय प्रदेशी एम । गुरु समस्तावे क्षिण विधे, ते सुगज्यो घर प्रेम |२| ॥ ढाल ११ मी ॥ · अधरम अवनीत, चालतो म्हांरी रोल | दादो हम तणोए । पानी हुतो घणों ए ॥ १ ॥ तुम कहणौ मुनिराय, गया होसी नरकां मांय । हेत दादा तो ए । मा पर हु'तो घणो ए ॥ २ ॥ आय दादा कहै आप, पोता मत कर पाप । हूं नरकां पड़यो ए । पाप घणो कस्यो ए ॥ ३ ॥ इम दादा कहै चाय, तो मालु मुनिराय | नहीं तर मांहरो ए । मत भादया सो खरो ए ॥ ४ ॥ गुरु कहै चोज लगाय, सांभल प्रदेशी राय । राणी तांहरी ए । सूरिकन्ता खरौ ए ३५ ॥ पहिर त्रोट जल न्हाय, सह शिणगार वणाथ | सोहन महणा तणो ए जलूसाइ घणौ ए ॥ ६ ॥ कोई पुरुष अनेरा आय, काम भोग लिपटाय । निजर घारे पड़े ए । तो डंड कुण सो करे ए ॥ ७ ॥ छेटु हाथ ने पोव । शूली
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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