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________________ ( ५३ ) कुंग बक्र जड मुट ए । ते चित में सर्ब सुगाईजो ॥ वं० ॥ २२ ॥ तुमनें चित चरचा करौ । चाली इहां आयाजी | ए अर्थ समर्थ है । हां स्वामी सत्यबायाओ ॥ ध० ॥ २३ ॥ काचो बात थारी नहीं । पहिले प्रश्न राय राज्याजी | अचरज माग्यो अतिघणो । श्रो मारग सही सांचाजो | ध० ॥ २४ ॥ प्रदेशी राजा कहै । किस्याज्ञान घां पासोजी । मनरी बात म्हांरी 1 कहो । ओ उत्तर प्रकाशोजी ॥ ध० ॥ २५ ॥ गुरु कहै पांच ज्ञाना तथा । जूदो जूदो है न्यावाजी । च्यार ज्ञान है म्हां कने । तिय सु जाग्यो घांरो भावोजी ॥ ६० ॥ २६ ॥ राय कहै केशौ खामनें । तुम कहो तो बेसुनी | गुरु कहै जायगां तांहरी । बैसण रहे किम कहिस्यु जो ॥ ध० ॥ २७ ॥ आप बेठ बेहं नगा । प्रश्न पूछै धर प्रेमोनी । थोरौ २ श्रद्धा सर्व साधां तणो । श्रद्धा है कहो केमोजौ ॥ ध० ॥ २८ ॥ जौव काया मानो जूदा । एम तुम नहीं मानोजी ॥ केशी कहै सर्व साधां ती । श्रद्धा एक पिछागोजी ॥ ६० ॥ २६ # आ श्रद्धा खामी थांहरो । नौव काया कहो जूदोंजो ॥ प्रश्न पूछै साधां भणौ । दूग स्वेतं का रो मृदोजी || · ध० ॥ ३० ॥
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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