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________________ ( ५०० समला हवां । पांमें धर्म विशेष हो चिता। ही मांहेलो । बोल न पावे एक हो चिता ॥ ॥ घोड़ा देश कमोद ना । मैं सख्या है ताय हो स्वामी। किण हिक बिरियां राय में दौधो सरबजीताय । खामो० ॥ १२ ॥ दूण मिस कर थां कने पास - राय समझगा नौत हो स्वामी। थे धर्म कथा निशंक सु कहज्यो आप निचिंत हो । स्वा० ॥ १३ ॥ १. ॥ दोहा ॥ . 4 सतगुरु कहे जाणीजसी, काले अवसर देख । इम सांभल चित स्वारथी, हर्षित हुवो विशेष ॥१॥" उठी ने बन्दणा करी, आयो नगरी मांय । किण बिध ल्याव राय नें, सांभल ज्योचित लाय ॥२॥ coomowome Ama ॥ ढाल १० मी॥ . आय राजा ने इम कहै। सांभल ज्यो सहाराय जी। ॥ घोड़ा देश कमोदना । मैं ताजा किया चरायजी ॥ धर्म दलाली चित करे ॥ १॥ किण बिट त्यावे राय ने। सांभल ज्यों नर नारोजी॥ चि सरोषा उपगारिया । बिरला इण संसारोजी ॥ ध० 17|| भाप मोमें सूप्या हता। ते देख लेज्यो चौड़न HOMohd.r
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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