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________________ ( ४१ ) रौं लाज हो खा० ॥ २ ॥ धर्म कथा कहो अगत सु। समझे प्रदेशी राय हो स्वा० । आकरा डण्ड लेने नहीं पाप कर्म टल जाय हो स्वामी ॥ म्हारा० ॥ ३ ॥ दो पद चौपद पशु पंखिया । दया उपने दिल माहे हो स्वामी । जीव हिंसा सुनिवृते। तो संवर निर्जरा थाय हो स्वा० ॥ ४ ॥ परदेशी समझवां थकां। समझे घया नर नार हो खा० ॥ आ हुवै बधोतर जिन धर्म नौ । दूण परदेश मभार हो खा० ।। म्हां ॥ ५ ॥ बार वार करू बिनती, 2 उपगारी परम् हो स्वा० । गुरू कहै च्यार बोल बिनां। न लहे केवलियो धर्म हो चिता हूं धर्म सुणावू किंण विधे ॥ ६ ॥ धर्म वणो षो घरमो। किम कर अणुगय हो चिता ॥ च्यार बोल प्रगट कहुँ । सांभल ज्यांरो नाम हो चिता हूँ धर्मः ॥ ७॥ वाग में आयां साधु कने, रहोमो न जाय चलाय हो चिता. ओबन्दणा भाव करे नहौं । चरचो न करे काय हो. चिता ॥ ॥ ८॥ गांव माहिं आयां थकां । बन्दणां न करे काय हो , चिता। घर आवी पिण साध में । दान दियो नहीं जाय हो चिता ॥ हूं० ॥ ६॥ ऊंच नौच जाये नहौं। हाथं न ऊंचों थाय हो चिवा । ओ सहामो पिण जोवे नहौं । मुखड़ो __ देवे ओ ढांक हो चिता ॥ हूं० ॥ १० ॥ च्यार बोल
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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