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________________ १७ सतरहवें बोले लेण्या छब १ एक लेण्या किण में पावे ? तेरहवें गुणस्थान में मावे-१ शुक्ल । २ दोय लेण्या किण में पावे ? तिजी नारको में पावे-कापोत, नौल। ३ तीन लेण्या किण में पावे ? देउकाय में पावे-कृष्ण, नौल, कापोत । ४ चार लेश्या किण में पावे ? पृथ्वी काय में . पावे ( पद्म, शुक्ल टली)। ५ पांच लेण्या किण में पावे ? सन्यासी री गत देवता में पावे ( शुक्ल टली)। ६ छव लेण्या किण में पावे ? समचै जौव में । १८ अट्ठारहवें बोले दृष्टि तीन ३१ एक दृष्टि किण में पावे ? चौथे गुणस्थान में पावे सम्यक् दृष्टि । २ दोय दृष्टि किण में पावे ? बेइन्द्रों में पावे सम्यक्, मिथ्या। ३ तीन दृष्टि किण में पावे ? समचे जीव में । १६ उगणीसर्वे बोले ध्यान चार । १ एक ध्यान किण में पावे ? केवलयां में पाव १ शुल। .
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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