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________________ ४० ४ १ ४२ ४३ ४४ ४५ ४६ ४७ ४८ ४६ 25 "3 " "" 33 "" 33 " "" " 35 " 99 ५० ५१ ५२ ५३ ५४ ५५ बादर पृथ्वीकाय पर्याप्ता असंखात गुणां । ५६, वादर अप्पाकाय पर्याप्ता असंख्यात गुणां । ५७ बादर बायुकाय पर्याप्ता असंख्यात गुणां । बादर तेऊकाय अपर्याप्ता असंख्यात गुणां । ५८ चूह बादर प्रत्येक शरीरौ वनस्पति अपर्याप्ता असंख्यात गुणां । "" " 53 53 33 " ( १६६ ) जोतषी देवता संख्यात गुणां । जोतीषौनो देवो संख्यात गुणौं । खैचर नपुंसक संख्यात गुणां । थलचर नपुंसक संख्यात गुणां । जलचर नपुंसक संखात गुणां । चोsन्द्रीका पर्याप्ता संख्यात गुणां । पंचेन्द्रका पर्याप्ता विशेषाईया । बेन्द्री पर्याप्ता विशेषाईया | तेइन्द्री पर्याप्ता विशेषाईया | पंचेन्द्रौ अपर्याप्त संख्यात गुणां । "3 " चौइन्द्रो अपर्याप्ता विशेषाईया | इन्द्रो अपर्याप्ता विशेषाईया । बेन्द्र पर्याप्ता विशेषाईया | बादर प्रत्येक वनस्पती पर्याप्ता श्रसंख्यात गुणां । बादर निगोद पर्याप्ता असंख्यात गुणां ।
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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