SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ } १६ २० १ २१ २२ तीजा देवलोकका देवता असंख्यात गुणां । २३, दूजी नारकी का नैरिया असंखांत गुणां । छिमोहिम मनुष्य असंखात गुणां । २४ २८ २६ ३० ३१ : ३२ ३३ ३४ >> " " 35 २५ २६,, दूजांकी देव्यां संख्यात गुणो । २७ 35 335 335 19 "" 13 " "" 35 ( १६५ ) पांचवां देवलोक का देवता असंख्यात गुणां । तोजी नारकौ का नैरिया असंख्यात गुणां । चौथा देवलोकका देवता असंख्यात गुणां । ३५. ११. ३६ दूजा देवलोकका देवता असंख्यात गुणां । 11 पहला देवलोकका देवता संख्यात गुणां । पहलांकी देव्यां संखात गुणौ । भवनपति देवतां असंख्यात गुणां । भवनपति की देव्यां संखात गुणी । पहली नारको को नेरिया असंखात गुणां । खेचर पुरुष असंख्यात गुणां । खेचरणी संख्यात गुणौ । थलचर पुरुष संखात गुणां । थलचरणौ संख्यात गुणौं । जलचरण पुरुष संख्यात गुणां । 33 ३७,, जलचरणौ संख्यात गुणों । वानव्यंतर देवता संखात दुर्गा | १,३८ ” ३६ वानत्र्यंतर देवो संगत गुणीं ।
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy