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________________ ( १६७ ) ६० ,, बादर निगोद अपर्याप्ता असंखयात गुणां। ६१ ,, बादर पृथ्वौकाय का अपर्याप्ता असंखात । . - गणां । । ६२ ,, बादर अप्पकाय अपर्याप्ता असंखघात ग णां। ६३ ,, बादर वायुकाम अपर्याप्ता असंखयात गणां । , सूक्ष्म तेउकाय अपर्याप्ता असंखशात गुणां। सूक्ष्म पृथ्वी अपर्याप्ता विशेषईया। ,, सूक्ष्म अप्य अपर्याप्ता विशेषाईया। ६७ ,, सूक्ष्म वायु अपर्याप्ता विशेषाईया । ,, सूक्ष्म तेउ पर्याप्ता संखयात गणां । ,, सूक्ष्म पृथ्वी पर्याप्ता विशेषाईया। सूक्ष्म अप्प पर्याप्ता विशेषाईया। , सूक्ष्म वायु पर्याप्ता विशेषाईया। ,, सूक्ष्म निगोद अपर्याप्ता असंखशात गुणां। ,, सूक्ष्म निगोद पर्याप्त संखाात गुणां। .. ७४ ,, अभव्य जीव अनन्त गगां । , पड़वाई समदृष्टी अनन्त गुणां। ७६ ,, सिद्ध भगवंत अनन्त गुणां । ७७ ,, बादर बनस्पति पर्याप्ता अनन्त गुणां । । ,, बादर पर्याप्ता विशेषाईया। 9. ,, बादर वनस्पति अपर्याप्ता असंखोत गुणां
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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