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________________ ( १६० ) १ धर्म ब्रत में की अबत में ब्रत में । २ धर्म आज्ञा मांहि के बाहर श्रीबीतरागदेव को . ___ आना मांहि छै। ३ धर्म हिंसा में के दया में—दया में ४ धर्म मोल मिले से नहीं मिले नहीं मिले, धर्म तो अचूल्य छै। . ५ देव मोल मिले के नहीं मिले- नहीं मिले, ___ अमूल्य है। ६ गुरु मोल लियां मिलै के नहीं मिलै---नहीं मिले, अमूल्य छै। ७ साधुजी तपस्या करै ते ब्रत में के अब्रत में ब्रत पुष्टको कारण छै, अधिक निर्जरा धर्म है। ८ साधजी पारणो करे ते ब्रत में के अब्रत में अब्रतमें नहीं, किणन्याय ? साधुके कोई प्रकार अब्रतरही नहीं सब सावद्य जोगका त्याग छ । तिणसं निरजराथाय छै तथा ब्रत पुष्टको कारण छ। . ६ श्रावक उपवास आदि तप करै ते ब्रत में के अब्रत में---ब्रत में। १० श्रावक पारण करे ते ब्रत में के अब्रत में--- अबत में किणन्याय ? श्रावक को खाणों पीणों
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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