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________________ ( १६१ ) । पहरणों ए सर्व अव्रत में है श्रीउववाई तथा सूयगडांग सूत्र में बिसतार कर लिख्या छ । ११ साधुजी ने सूजतो निर्दीष पाहार पाणी दियां काई होवे, ब्रतमें के अब्रतमें-अशुभ कर्म क्षय थाय तथा पुन्य बंधे छै, १२ मं ब्रत छै। १२ साधुजी ने असूजतो दोष सहित आहार पाणी दियां काई होवै तथा ब्रत से के अब्रत मेंश्री भगवती सूत्र में कह्यो छै, तथा श्री ठाणांग सुत्र के तौजे ठानों में कह्यो छै अल्प आयुबंधै अकल्याणकारी कर्म बंधै तथा असूजतो दौधोते बत में नहौं । पाप कर्म बंधै छै। १३ अरिहंत देव देवता के मनुष्य-मनुष्य छै। १४ साधु देवता के मनुष्य-मनुष्य छ। १५ देवता साधुनौं बंछा करै के नहीं कर-कर साधु __तो सबका पूजनीक है। १६ साधु देवताको बंछा कार के नहीं करै-नहीं करे। १७ सिद्ध भगवान देवता के मनुष्य-दोनं नहौं । १८ सिद्ध भगवान सुक्ष्म के बादर-दोन नहौं । १६ सिद्ध भगवान उसके स्थावर-दोनं नहौं । २० सिद्ध भगवान सन्नी के असन्नी-दोन नहौं । २१ सिद्ध भगवान पर्याप्ता के अपर्याप्ता-दोनूं नहीं। ११. इति पाना फी भरमा
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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